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दी इकोनॉमिस्ट ने नोटबंदी, जीएसटी को बताया जनव‍िरोधी

अंतरराष्ट्रीय कारोबारी पत्रिका दी इकोनॉमिस्ट ने अपने ताजा अंक में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कवर स्टोरी (आवरण लेख) प्रकाशित की है। पत्रिका ने पीएम मोदी के कामकाज की आलोचनात्मक समीक्षा करते हुए लिखा है कि “उनकी सरकार अपने तीन साल के कार्यकाल में उल्लेखनीय आर्थिक सुधार करने में विफल रही है।” “भारतीय प्रधानमंत्री जितने बड़े सुधारवादी दिखते हैं उतने हैं नहीं” शीर्षक लेख में पत्रिका ने भारत में एक जुलाई से लागू हो रहे वस्तु एवं सेवा कर (जीेएसटी) की भी आलोचना की है। पत्रिका ने जीएसटी को बेवजह जटिल और लालफीताशाही वाला कानून बताया है। पत्रिका ने मोदी सरकार द्वारा किए गए नोटबंदी को भी विकास विरोधी और कारोबार विरोधी बताया है। पत्रिका के अनुसार नोटबंदी से वैध कारोबारियों को जितनी दिक्कत हुई उतनी काले धंधे वालों को तकलीफ नहीं हुई।

पत्रिका ने लिखा है कि मोदी सरकार के पास पिछले कुछ दशकों का सबसे प्रचंड बहुमत है और विपक्ष पूरी तरह ओजहीन है फिर भी वो बड़े स्तर पर आर्थिक सुधार नहीं लागू कर सकी। पत्रिका ने पीएम नरेंद्र मोदी के सुधार लागू करने की काबिलयित पर भी सवाल उठाए हैं। पत्रिका के अनुसार मोदी सरकार वर्तमान वैश्विक अवसरों और लाभदायक घरेलू राजनीतिक परिस्थितियों का फायदा नहीं उठा सकी।

पत्रिका ने लिखा है, “उनकी कारोबार के लिए मित्रवत नेता की छवि मुख्यतः इस आधार पर बनी है कि वो मुश्किल में पड़ी संस्थाओं की मदद पुरजोर कोशिश करते हैं….किसी एक फैक्ट्री को जमीन दिलवा देना या कहीं बिजलीघर निर्माण में तेजी ला देना। लेकिन वो व्यवस्थित तरीके से काम करने में अच्छे नहीं हैं जिससे अर्थव्यवस्था को जड़ बनाने वाले मुश्किलों का हल निकाला जा सके…भारत को केवल बिजलीघर या विकास के लिए जमीन के टुकड़े भर नहीं चाहिए। उसे बिजली और जमीन के लिए सुचारू बाजार चाहिए, नकदी और श्रम क्षमता चाहिए।”

पत्रिका ने मोदी सरकार के कार्यकाल में सार्वजनिक क्षेत्र की बहसों का सिकुड़ते आकाश पर भी सवाल उठाया है। पत्रिका ने लिखा है कि “हिदू राष्ट्रवादी ठग” किसी को भी धमका देते हैं और भारत सरकार देश के सेकुलर परंपरा से कथित तौर पर दूर जा रही है। पत्रिका ने टीवी चैनल एनडीटीवी के प्रमोटरों प्रणय रॉय और राधिका रॉय के घर और दफ्तर पर जांच एजेंसी सीबीआई के छापे को मोदी सरकार की “दबंगई” बताया है।

पत्रिका ने लिखा है कि पीएम मोदी “सुधारवादी” से ज्यादा “अंध-राष्ट्रवादी” हैं। पत्रिका के अनुसार पीएम मोदी “चापलूसी भरी व्यक्तित्व पूजा” के केंद्र बन चुके हैं। पत्रिका ने आशंका जतायी है कि ये सब आगामी चुनाव जीतने के लिए अपनाया गया हथकंडा हो सकता है क्योंकि ये समझना बहुत टेढ़ी खीर नहीं है कि वो गलत दिशा में जा रहे हैं।

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