रायसीना हिल पर कब्जे केलिए संग्राम की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ ‘धर्मनिरपेक्ष’ दलों के नेताओं ने 10, जनपथ के साथ मोदी-शाह की रणनीति का मुकाबला करने के लिए इस पर चर्चा शुरू कर दी है। भारत के शीर्ष संवैधानिक पद के उम्मीदवार पर सहमति बनाने की कोशिश की जा रही है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल जुलाई में खत्म होने जा रहा है। राष्ट्रपति चुनाव पर बातचीत अभी प्रारंभिक चरण में है और अभी किसी का नाम उम्मीदवार के रूप में बताना जल्दबाजी होगी। लेकिन सूत्रों के अनुसार, क्षेत्रीय पार्टियों की दिलचस्पी कांग्रेस की बजाय अपने बीच में से उम्मीदवार उतारने की है। हाल ही में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकापा) प्रमुख शरद पवार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की और राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक संयुक्त उम्मीदवार उतारने पर चर्चा की। बिहार के मुख्यमंत्री व जनता दल युनाइटेड (जदयू) के अध्यक्ष नीतीश कुमार, जदयू नेता शरद यादव, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने सीताराम येचुरी व भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) नेता डी.राजा सभी ने सोनिया गांधी से मुलाकात की। वास्तव में यह सब बीते सप्ताह नीतीश कुमार की सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद शुरू हुआ। नीतीश कुमार ने सोनिया से राष्ट्रपति चुनाव के लिए सर्वसम्मति से उम्मीदवार चुनने की बात कही। राष्ट्रपति चुनाव 25 जुलाई से पहले होने हैं। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का 25 जुलाई को कार्यकाल खत्म हो रहा है।
जदयू के प्रवक्ता के.सी. त्यागी ने कहा, “आम उम्मीदवार उतारने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। भारत का संविधान खतरे में है, इसके प्रस्तावना के आदर्शो पर हमला किया जा रहा है। यदि एक संघ परिवार का कोई सदस्य भारत का संवैधानिक प्रमुख हो जाता है तो संविधान की समीक्षा की जाएगी, जो भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होगा।” उन्होंने कहा कि पार्टियां मई के अंत तक सर्वसम्मति पर पहुंच सकती हैं। निस्संदेह पार्टियां इस समय अपने पत्ते नहीं खोलेंगी। हालांकि शरद पवार और शरद यादव इस चर्चा के दायरे में हैं। राजा ने कहा, “सोनिया जी ने मुझे फोन किया था और मैं उनसे मिलने गया था। हमने उनसे राष्ट्रपति चुनाव के लिए एक साझा उम्मीदवार रखने पर चर्चा की। लेकिन किसी नाम पर चर्चा नहीं हुई।” उन्होंने कहा, “उम्मीदवार पर आम सहमति होनी चाहिए।”
हालांकि, राष्ट्रपति चुनाव की तत्कालिक चुनौती और 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए एक बड़ा गठबंधन बनाना कुछ क्षेत्रीय दलों के कांग्रेस से मोहभंग हो जाने की वजह से यह आसान नहीं होगा। कांग्रेस के बड़े भाई की भूमिका वाली आदत इसमें बड़ी बाधा है। एक बड़ी क्षेत्रीय पार्टी के वरिष्ठ नेता ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, “समस्या यह है कि जहां भी कांग्रेस बड़ी स्थिति में है, वह छोटी पार्टियों को साथ नहीं लेती और जिन स्थानों पर यह छोटी है, वहां दूसरे दलों से यह बड़ा हिस्सा चाहती है।”
एक हालिया उदाहरण देते हुए नेता ने कहा कि हाल में कर्नाटक में हुए उपचुनावों में जनता दल सेक्युलर (जद-एस) ने अपना उम्मीदवार न उतारकर कांग्रेस की मदद की और कांग्रेस का उम्मीदवार जीत गया। उन्होंने कहा, “लेकिन कांग्रेस ने कहा कि वह खुद से जीती है। उसने जद-एस की सहायता की बात को खारिज कर दिया।”
त्यागी ने कहा, “यह एक दिलचस्प चुनाव होगा। सभी गैर-राजग दलों को लेकर हमारे पास राजग की तुलना में 35,000 ज्यादा वोट हैं। लेकिन इनमें तोड़-फोड़ होगी। अमित शाह और मोदी तोड़-फोड़ में बड़े माहिर हैं।”