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मोदी सरकार की इस स्कीम की TOI ने की थी आलोचना, जानिए…

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर जयपुर ब्यूरो ने 14 सितंबर को एक खबर छापी थी। जिसमें मोदी सरकार के फसल बीमा योजना की आलोचना की गई थी। इस रिपोर्ट को अपनी वेबसाइट पर भी पब्लिश किया। लेकिन कुछ देर बाद ही विवाद बढ़ता देख वह स्टोरी अपनी साइट से हटा लिया। रिपोर्ट में कहा गया किया जब पिछले साल प्रधानमंत्री ने फसल बीमा योजना की घोषणा की तो इसे किसानों के लिए वरदान के तौर पर देखा जा रहा था। लेकिन 18 महीने बाद ही जब रिपोर्ट सामने आई तो सारे दावो के पोल खुल गए। रिपोर्ट में पता चला कि इस योजना से सबसे ज्यादा फायदा हुआ, वह बीमा कंपनियों को हुआ। किसान तो पहले से ही कम मुनाफे और फसल नुकसान के बोझ से दबा हुआ था। उस पर कर्ज को बोझ और बढ़ गया।

रिपोर्ट में रोसमा थॉमस का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि किस तरह से राजस्थान में फसल बीमा योजना के नाम पर किसानों को ढाल बनाया गया है। टीओआई की रिपोर्ट में सीएजी और सीएसई का हवाला दिया गया है। कहा गया है कि बीमा कंपनियों ने किसानों को कई तरह के लुभावने वादे करके उनसे ज्यादा प्रीमियम लिया। जिसमें कंपनियों ने अप्रैल तक 10000 करोड़ रुपये मुनाफा दर्ज किया।

किसानों की ओर से रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंक बिना बताए उनके खातों से पैसे काट रहे हैं। उन्हें किसी तरह से मैसेज द्वारा बताया नहीं जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि किसान क्या फसल उगा रहे हैं उसकी बैंक वालों को जानकारी नहीं है, जबकि वे इंस्पेक्शन के नाम पर 1718 रुपये काट रहे हैं। बैंक वाले प्रीमियम तब काट रहे हैं, जब फसल बर्बाद होने के अंतराल से बाहर आ चुकी थी। लिहाजा उन्हें इस बीमा को कोई लाभ नहीं मिल रहा है।

रिपोर्ट में इसी तरह के कई किसानों का जिक्र किया गया है। उसमें कहा गया है कि बैंक इंस्पेक्शन के नाम पर उनसे लगातार चार्ज करते रहते हैं। लेकिन उन्हें हमारे फसल के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है। यहां तक कि वे कभी खेतों में फसलों को देखने भी नहीं आते। टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल हनुमानगढ़ से खरीफ के सीजन में 125.63 करोड़ उगाहे गए। जिसमें 8.71 करोड़ पर ही दावा आया और 1.37 लाख किसानों में 7000 ही इससे लाभांवित हो पाए। रिपोर्ट में कहा गया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में खरीफ के 2 प्रतिशत और राबी के लिए 1.5 प्रतिशत ही प्रीमियम जाता है, वहीं हॉर्टिकल्चर फसलों का 5 प्रतिशत दिया जाता है।

वहीं कपास किसान बलविंदर सिंह का कहना है, ”फसल के लिए अप्रैल, मई, जून के महीने सबसे ज्यादा रिस्की रहते हैं, इसलिए इस समय फसलों को कोई नुकसान होने की संभावना हमेशा बनी रहती है।”
बहरहारल, उसमें कोई शक नहीं है कि फसल बीमा के नाम पर केंद्रीय और सहकारी बैंक किसानों से मनचाहे वसूली कर रहे हैं। लेकिन उन्हें योजना के बारे में या फसल सुरक्षा के नाम पर पारदर्शिता के साथ बैंक कोई जानकारी नहीं दे रहे हैं। आलम यह हो गया है कि कुछ राज्यों में किसान फसल बीमा योजना को लेकर बैंकों का विरोध कर रहे हैं।

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