नई दिल्ली/ललित बेलवाल। प्रसिद्ध पत्रकार प्रभाष जोशी की जन्मतिथि पर प्रभाष प्रसंग स्मृति व्याख्यान में किसानों के संकट पर संबोधित करते हुए रैमन मैग्सेस पुरुस्कार प्राप्त पी. साईनाथ ने कहा कि 1991 से 2011 के बीच लगभग 2000 किसानों ने रोज खेती छोड़ी। इस अंतराल में खेती से कुल 1 करोड़ 49 लाख किसान खेती से दूर हुए। उन्होंने किसान और सीमांत किसान के बीच अंतर को स्पष्ट करते हुए बताया कि वर्ष में 180 दिन से ज्यादा खेती करने वाला व्यक्ति जनगणना के अनुसार किसान है और 180 दिन से कम खेती से जुड़ा व्यक्ति सीमांत किसान है। उन्होंने बताया कि सीमांत किसानों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
सभा को संबोधित करते हुए साईनाथ ने कहा कि खेती पर संकट 1997 से आना शुरु हुआ। इस विपदा के बारे में अखबारों में नाकाफी तौर पर सन् 2000 से थोड़ा लिखा जाना शुरु हुआ। साईनाथ ने कहा कि किसानों की आत्महत्या के आंकड़े इकट्ठा करने में सरकारें घालमेल कर रही है। अचानक 12 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों ने घोषित कर दिया कि उनके राज्यों में किसान आत्महत्या के कोई मामले सामने नहीं आए। कर्नाटक राज्य में किसानों की आत्महत्या 46 फीसदी कम हुई लेकिन अतिरिक्त आत्महत्याएं 235 फीसदी बढ़ गई। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकारें किसानों की आत्महत्या के आंकड़े इकट्ठा करने में कितना अधिक गड़बड़झाला कर रही है।
महिला किसानों की दयनीय स्थिति की ओर ध्यान खींचते हुए उन्होंने कहा कि 60 प्रतिशत से अधिक खेतीबाड़ी का काम महिलाएं करती है। फिर भी महिलाओं का नाम किसान के तौर पर सरकारी दस्तावेजों में दर्ज नहीं होता है।
साईनाथ ने कहा कि किसान सूखे की समस्या से नहीं बल्कि जबरदस्त पानी के संकट से जूझ रहे है। जो कि लगातार दस अच्छे मानसून से भी कम नहीं हो सकेगा।
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