A poor woman decided hard to travel from the cottage to the airplane: an exhilarating story
जब कभी कोई हवाई जहाज दूर आसमान में गांव के ऊपर से गुजरता, नजरें अचानक ऊपर उठ जातीं। उसकी किस्मत में इतना देख लेना ही काफी था। दुनिया फूस की झोपड़ी और खेतों में मजदूरी तक सीमित थी। पर एक दिन आया जब उसके हौसले की उड़ान हवाई जहाज की ऊंचाई तक जा पहुंची। गया, बिहार के शेरघाटी इलाके की रहने वाली सुनीता मांझी आज पूरे क्षेत्र के लिए प्रेरणास्रोत हैं। फूस की झोपड़ी से हवाई जहाज के सफर तक की इस प्रेरक कहानी में सुनीता का संघर्ष, हौसला और जज्बा छिपा है।
शादी के छह माह बाद से ही मजदूरी
महादलित परिवार से ताल्लुक रखने वाली सुनीता बताती हैं, पांचवी तक पढ़ाई की थी। कम उम्र में ही बनियांबरौन गांव के राजू मांझी के साथ शादी कर दी गई। 2006 में ससुराल आई तो छह महीने बाद मजदूरी के लिए परिवार संग खेतों में जाने लगी। उस समय मजदूरी में प्रतिदिन डेढ़ किलो अनाज मिलता था।
मेहनत से बनीं ग्राम संगठन की अध्यक्ष
वे बताती हैं, पहली बार ऋण मिलने पर उत्साह बढ़ा। फिर नियमित बैठकें होने लगीं। आज तीन लाख तक का ऋण मिल रहा है। इसके कारण काफी संख्या में गांव की महिलाएं आर्थिक रूप से समृद्ध हो रही हैं, बच्चों को पढ़ा पा रही हैं। सुनीता के काम को देखते हुए 2009 में उन्हें उज्ज्वला ग्राम संगठन का अध्यक्ष बना दिया गया।
जीवन की नई शुरुआत
बताती हैं, 2008 में जीविका संगठन की दीदी स्थानीय आंगनबाड़ी केंद्र में बैठक कर रही थी तो मैं भी चली गई। वहां बचत के तरीके बताए जा रहे थे। औरों के साथ मैं भी सरस्वती जीविका समूह से जुड़ गई। छह माह बाद पूरे कलस्टर में प्रथम स्थान प्राप्त किया…। सुनीता के समूह को पचास हजार का ऋण दिया गया। उनके कार्य को देखते हुए उन्हें समूह का अध्यक्ष भी बना दिया गया।
बढ़ती गई समूह की ताकत
2010 में दो लाख का ऋण मिला तो सभी की सहमति से कृषि कार्य के लिए सबमर्सिबल पंप लगाया। जो पहले ताने देते थे, वे अब पास आने लगे। 2010 में समूह और आगे बढ़ा। सुनीता न सिर्फ बिहार, बल्कि झारखंड, उत्तरप्रदेश, दिल्ली व अन्य जगहों पर प्रशिक्षण देने के लिए जाने लगीं।
नारी खुद आगे आए तभी सशक्तीकरण
फूस की झोपड़ी की जगह अब ईंटों का मकान है। सुनीता के तीनों बच्चे पढ़ रहे हैं। वे कहती हैं कि वर्षों की मेहनत से जिंदगी बदल गई। ग्रामीण परिवेश में महिलाएं कुछ करती हैं तो ताने बहुत सुनने पड़ते हैं। उन्होंने कभी इसकी परवाह नहीं की। पति का सहयोग मिलता रहा। आज संगठन से जुड़ी 181 महिलाओं में 93 अपना रोजगार कर रही हैं। इस साल तक 37 ग्राम संगठन कार्य कर रहा है, जिसका नेतृत्व उन्हें सौंपा गया है। सुनीता कहती हैं, नारी सशक्तीकरण नारियों से ही होगा, बस हौसले की जरूरत है।
जब हवाई सफर का संदेश मिला
बताती हैं, यह 2012 की बात है। स्वतंत्रता दिवस समारोह में भाग लेने के लिए जीविका की दीदियों को दिल्ली से प्रधानमंत्री का बुलावा आया। उनमें मेरा भी नाम था। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था। मैंने तो बस जहाज को उड़ते देखा था, जिसका पूरा परिवार मजदूरी करता हो, वह सपने में भी उसके पास जाने की नहीं सोच सकता। यह मेरे जीवन का बहुत सुखद क्षण था।