उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने पद संभालने के बाद से अब तक मेहमानों को चाय-पानी कराने में 68 लाख रुपये से ज्यादा खर्च कर चुकी है। राज्य सरकार ने सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत यह जानकारी दी है। पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने जीत हासिल की थी। इसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 18 मार्च, 2017 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। आरटीआई कार्यकर्ता हेमंत सिंह गौनियों ने 19 दिसंबर, 2017 को सीएम द्वारा चाय-पानी के मद में किए गए खर्च के बारे में जानकारी मांगी थी। राज्य सचिवालय प्रशासन की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, उत्तराखंड सरकार ने 11 महीनों में चाय-पानी पर कुल 68,59,865 रुपये खर्च किए। यह राशि मंत्रियों और विभिन्न विभागों के अधिकारियों द्वारा अतिथियों के आवभगत में खर्च की गई। चुनावों में भाजपा ने 70 सदस्यीय विधानसभा में 57 सीटें हासिल की थीं।
उत्तराखंड की भाजपा सरकार द्वारा मेहमानों के चाय-नाश्ते पर लाखों रुपये खर्च करने को लेकर सोशल साइटों पर लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। एक व्यक्ति ने ट्वीट किया, ‘इससे अमित शाह यह प्रूव करेंगे कि नाश्ता बेचने में मुनाफा है।’ सौरव सिन्हा ने लिखा, ‘अब की बार रिफ्रेशमेंट सरकार।’ आलोक कुमार सिंह ने चुटकी लेते हुए लिखा, ‘राष्ट्रवादी नाश्ता है भाई।’ हरीश ने ट्वीट किया, ‘इससे ऐसा लगता है कि चाय-पानी बेचने वालों की कमाई आसमान छू रही है।’ पंकज कुमार ने नरेंद्र मोदी के बयान का हवाला देते हुए लिखा, ‘बहुत अच्छा! ना खाउंगा, ना खाने दूंगा डायलॉग का क्या हुआ?’ सौरव चहल ने ट्वीट किया, ‘त्रिवेंद्र सिंह की इस गलती को भाजपा माफ कर देगी यदि उस रिफ्रेशमेंट और स्नैक्स में पकौड़ा होगा।’ वहीं, विनीत ने लिखा, ‘इसको कहते हैं खाऊ सीएम!’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहे त्रिवेंद्र रावत डोईवाला से जीतकर तीसरी बार विधायक बने थे। वह वर्ष 2002 में चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने थे। पिछले विधानसभा के लिए हुए चुनावों में भी वह जीते थे। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह दोनों का करीबी माना जाता है। त्रिवेंद्र सिंह रावत बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव के साथ ही झारखंड के प्रभारी भी रह चुके हैं। राजनीति में कदम रखने से पहले वह पत्रकारिता में भी हाथ आजमा चुके थे।