भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह द्वारा नारायण राणे को पार्टी में शामिल कराने के फैसले से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस और पार्टी राज्य इकाई की मुश्किलें बढ़ गईं हैं। ऐसा इसलिए हैं क्योंकि एमएलसी नारायण राणे और उनके बेटे नीतेश के साथ अन्य कांग्रेस समर्थक विधायकों के भाजपा में आने से कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में नहीं रह पाएगी। इनके भाजपा में शामिल होने से मुख्य विपक्षी दल एनसीपी बन जाएगा। और एनसीपी के अजीत पवार के साथ फड़णवीस को सदन चलाने में काफी परेशानी होती रही है। कांग्रेस के महाराष्ट्र सदन में 42 विधायक है जबकि एनसीपी के 40 विधायक है। ऐसे में कांग्रेस के विधायक कम होते हैं तो एनसीपी सदन में मुख्य विपक्षी पार्टी होगी। दरअसल एनसीपी को मुकाबले सीएम फड़णवीस को कांग्रेस के विपक्ष में रहते सरकार चलाने में कम परेशानियां होती हैं।
साफ है कि अगर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे अपने दो समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल होते हैं तो उनकी एमएलसी और दो विधायकों की सदस्यता भंग हो जाएगी। ऐसे में भाजपा को इन सीटों को हर हाल में जीतना होगा। उधर फड़णवीस इस बात को लेकर खासे चिंतित है कि राणे को रोकने के लिए एनसीपी, कांग्रेस और सहयोगी पार्टी शिवसेना एक साथ आ सकती हैं।
दूसरी तरफ कांग्रेस ने सीएम फड़णवीस सरकार के उस दावे पर निशाना साधा है जिसमें कहा जाता है रहा है रि निवेश के मामले में महाराष्ट्र नंबर वन पर है। इसपर कांग्रेस ने केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रीयल पॉलिसी एंड प्रमोशन की रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया कि महाराष्ट्र तीसरे नंबर पर आ गया है। महाराष्ट्र कांग्रेस प्रवक्ता सचिव सावंत ने शनिवार (11 अक्टूबर) को संवाददाता सम्मेलन कर निवेश संबंधी मामलों पर फडणवीस सरकार के दावों पर सवाल उठाए। केंद्रीय वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के इंडस्ट्रीयल पॉलिसी एंड प्रमोशन की रिपोर्ट के आंकड़े सामने रखते हुए सावंत ने बताया कि 2015 में गुजरात में 63,823 करोड़, छत्तीसगढ़ में 36,511 करोड़, कर्नाटक में 31,544 करोड़ और महाराष्ट्र में 32,919 करोड़ रुपए के निवेश का प्रस्ताव आया था।
मगर 2016 में कर्नाटक में एक लाख 54,131 करोड़, गुजरात में 53,621 करोड़ और महाराष्ट्र में 38,084 करोड़ रुपए का निवेश प्रस्ताव ही आया। कांग्रेस प्रवक्ता सावंत ने इस साल जनवरी से सितंबर के आंकड़े रखते हुए कहा कि नौ महीने में कर्नाटक में 1 लाख 47 हजार 625 करोड़ रुपए, गुजरात में 65 हजार 741 करोड़ रुपये और महाराष्ट्र में 25 हजार 18 करोड़ रुपये के निवेश के प्रस्ताव आए। इन आंकड़ों से साबित होता है कि निवेश के मामले में महाराष्ट्र काफी पीछे चला गया है। पड़ोसी राज्य गुजरात ने महाराष्ट्र को काफी पीछे छोड़ दिया है।