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क्या आप जानते हैं धीरे धीरे BJP ने क्यूँ बना ली है L K Advani से दूरी..

Do you know why the BJP has slowly created a distance from LK Advani ..

       

आज की भाजपा (BJP) जिसे खड़ा करने और भारत की एक प्रमुख पार्टी बनाने में लालकृष्ण आडवाणी का योगदान सर्वोपरि है। भारतीय जनता पार्टी के जिन नामों को पूरी पार्टी को खड़ा करने और उसे राष्ट्रीय स्तर तक लाने का श्रेय जाता है उसमें सबसे आगे की पंक्ति का नाम अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी का हैं। भारतीय जनता पार्टी को हम अटल बिहारी वाजपेयी तथा लालकृष्ण आडवाणी के बिना बिलकुल अधूरी हैं। लालकृष्ण आडवाणी कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा। कुल मिलाकर पार्टी के आजतक के इतिहास का अहम अध्याय हैं लालकृष्ण आडवाणी। वे 3 बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। जनवरी 2008 में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने लोकसभा चुनावों को आडवाणी के नेतृत्व में लड़ने तथा जीत होने पर उन्हें प्रधानमंत्री बनाने की घोषणा की थी। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी कहा था कि- “अटलजी के बाद, आडवाणी ही है, वे प्रधानमंत्री पद के लिए प्राकृतिक रूप से दावेदार है। भारतीय संसद में एक अच्छे सांसद के रूप में आडवाणी अपनी भूमिका के लिए कभी सराहे गए तो कभी पुरस्कृत भी किए गए।

मगर आज कल तक जो चेहरा सूरज की तरह चमकता था आज वो धुंधला सा क्यूँ हैं ये सवाल हर किसी के मन में कभी न कभी बरबस आ ही जाता हैं, आइये जानते हैं कुछ उनके चरित्र के बारे में-

बीजेपी के इस वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का जन्म एक सिंधी परिवार में 8 नवंबर 1927 को ब्रिटिश इंडिया के कराची पाकिस्तान में हुआ था। उनके पिता किशनचंद आडवाणी और मां ज्ञानी आडवाणी थीं। कराची में अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद लालकृष्ण आडवाणी भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद परिवार सहित भारत आ गए थे, जहाँ उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से लॉ में Graduation किया। आडवाणी जी का विवाह 25 फरवरी 1965 को कमला आडवाणी से हुयी। विभाजन के वक्त आडवाणी की तरह ही कमला का परिवार भी पाकिस्तान से भारत आया था। उनके दो बच्चे बेटा जयंत और बेटी प्रतिभा है। 1. प्रतिभा आडवाणी टॉक शो होस्ट और प्रोड्यूसर हैं। वो एक मीडिया कंपनी चलाती हैं। 2. जयंत आडवाणी मीडिया से दूरी बना कर रखते हैं। हालांकि 1991 के बाद से वो अपने पिता के लिए चुनाव प्रचार करते हुए देखे गए हैं।

1947 में आरएसएस का सेक्रेटरी बनने के साथ ही उनका पॉलिटिकल करियर शुरू हुआ। कई दिग्गज एवं अनुभवी नेता ने जनता पार्टी छोड़ कर वर्ष 1980 में एक नयी पार्टी का निर्माण किया। इस पार्टी को “भारतीय जनता पार्टी” (BJP) का नाम दिया गया। आडवाणी इस नयी पार्टी के वशिष्ठ एवं महत्वपूर्ण नेता थे। इसके बाद वे 1982 में उच्च सदन (राज्य सभा) के लिए पार्टी द्वारा मध्य प्रदेश से मनोनीत हुए।अटल बिहारी वाजपाई को नयी भारतीय जनता पार्टी के सबसे पहले अध्यक्ष के तौर पर चुना गया। अटलजी की अध्यक्षता में पार्टी में हिन्दुत्व की भावना और अधिक प्रज्वलित हुई। वर्ष 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद से 1986 तक लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के महासचिव रहे। इसके बाद 1986 से 1991 तक पार्टी के अध्यक्ष पद का उत्तरदायित्व भी उन्होंने संभाला। आडवाणी ने अभी तक के राजनीतिक जीवन में सत्ता का जो सर्वोच्च पद संभाला है वह है एनडीए शासनकाल के दौरान उपप्रधानमंत्री का। लालकृष्ण आडवाणी वर्ष 1999 में एनडीए की सरकार बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेत़ृत्व में केंद्रीय गृहमंत्री बने और फिर इसी सरकार में उन्हें 29 जून 2002 को उपप्रधानमंत्री पद का दायित्व भी सौंपा गया।

यहीं से L. K. आडवाणी की के राजनैतिक सफर के अंत की शुरुआत भी हो चुकी थी। राजनीति में रहते उन पर कई आरोप भी लगे। उन पर हवाला ब्रोकर्स से रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया, लेकिन सूप्रीम कोर्ट ने सबूतों के अभाव में इन्हे बाइज्जत बरी कर दिया। एक बार यूँ भी हुआ था कि जून 2005 में वे कराची के दौरे पर गए, जो कि उनका जन्मस्थान है, वहाँ उन्होने मोहम्मद अली जिन्नाह को एक धर्मनिरपेक्ष नेता बताया। यह बात RSS के हिन्दू नेताओं के गले नहीं उतरी और इस बयान के विरोध में आडवाणी के इस्तीफे की मांग कर डाली। आडवाणी जी को विपक्ष के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा, लेकिन बाद में उन्होने अपना इस्तीफा वापस ले लिया। 2009 तक आडवाणी विपक्ष के अध्यक्ष रहे लेकिन इस दौरान उन्हें पार्टी का ही विरोध झेलना पड़ा। उनके करीबी माने जाने वाले पार्टी के नेता मुरली मनोहर जोशी, मदनलाल खुराना, उमा भारती ने उनका विरोध शुरू कर दिया। वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जिन लोगों को अभियुक्त बनाया गया है उनमें आडवाणी का नाम भी शामिल है। हालाँकि लखनऊ में एक विशेष सीबीआई अदालत ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में नौ नेताओं के साथ पूर्व उप प्रधान मंत्री लालकृष्ण आडवाणी, बीजेपी के अनुभवी मुरली मनोहर जोशी और कैबिनेट मंत्री उमा भारती को जमानत दे दी थी। ये वो दौर था जब वो 2017 में राष्ट्रपति की दावेदारी की रेस मेंसबसे आगे थेऔर इस तरह उन्होंने अपनी राजनीती का आखिरी मौका भी गवाँ दिया। 

जिस आक्रामकता के लिए आडवाणी जाने जाते थे, उस छवि के ठीक विपरीत आज वो समझौतावादी नज़र आते हैं। हिन्दुओं में नई चेतना का सूत्रपात करने वाले आडवाणी में लोग 90 के दशक का आडवाणी ढूंढ रहे हैं। अपनी बयानबाज़ी की वजह से उनकी काफी फज़ीहत हुई। आडवाणी इतिहास की इतनी सी मोटी बात नहीं समझ पा रहे है कि उगते सूरज को सब सलाम करते है। एक समय था जब जेपी, वीपी और अटल के साथ हर नेता तस्वीर खिंचवाने की तमन्ना रखता था लेकिन जैसे ही उनका रसूख खत्म हुआ उन्हें पूछने वाला कोई नहीं दिखा।

@TheSuneelMaurya

 

the authorSunil Maurya
Karm se Engineer Mun se Social Activist

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