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बलिदानो व आंदोलनों से भरा भारतीय स्वतंत्रता का इतिहास, जानिये कैसे हुआ आजाद

History of Indian independence with sacrifices and movements, know how we got freedom!

      

भारत के इतिहास में 15 अगस्त का एक अलग ही महत्व है। भारतवासियों ने स्वतंत्रता के लिए सभी मूल्यों को चुकाया है। यह काफी लंबे समय तक अंग्रेजों के अधीन रहकर उनकी गुलामी करता रहा। आजादी के लिए देश में कई सारे आंदोलन व जंग हुए, जिसमें भारत के लोगों ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया और अपना पूरा जीवन भारत के नाम कर दिया। जिसके चलते कइयों की जाने चली गई। तो कई लोग ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों के कारण शहीद हो गए। और तब जाके 15 अगस्त 1947 में मिली भारत को अंग्रेजों से आजादी। तभी से आज तक 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। जब आजादी की जंग छेड़ी गई तो उस समय अंग्रेजों ने भारत को दो टुकड़ों में विभाजित कर दिया था। आजादी के बाद भारत के सर्वप्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू बने। तो उस दिन पूरे भारत में उत्सव मनाया जा रहा था। सभी कार्यालयों, स्कूलों व कॉलेजों में तिरंगा फहराया जा रहा था।

भारतीय स्वतंत्रता लंबा इतिहास है जो बलिदानो व आंदोलनों से लबालब है। यूरोपीय व्यापारियों ने 17वीं सदी में अपने आउटपोस्ट को भारत में बनाना शुरू कर दिया। इनका व्यापार जब भारत में आ गया तो धीरे-धीरे इनलोगों ने मिलिट्री फौर्स तैयार कर ली। लालच बढ़ने की वजह से अंग्रेजों ने भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना करके कलकत्ता को अपनी राजधानी बना ली। मुगली सल्तनत के कमजोरी के कारण इन्होंने भारत में अपनी अच्छी खासी जगह बना ली। जिसके बाद बंगाल के नवाब सिराजुददौला की सेना ने 1757 में British East India कंपनी के साथ युद्ध तो किया पर वो उसको जीत नही पाए। तब तक तो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में और अच्छी पकड़ बना ली। अंग्रेजों ने 1764 में बक्सर के युद्ध में जीत हासिल कर ली।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में 1857 की क्रांति का एक बहुत ही बड़ा असर है। अंग्रेजों से आजादी की भारत में यह पहली लड़ाई थी। जो कि पूरे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ थी। यह अनमानना है कि इस क्रांति की शुरुआत मंगल पांडेय के बगावत से शुरु हुई थी। वह एक रेजिमेंट में सैनिक के रूप में कार्यरत थे। गाय के मांस की चर्बी लगी होती थी वहां के कारतूस में। और यही वो कारण है कि मंगल पांडेय ने उस कारतूस का प्रयोग करने से साफ इंकार कर दिया था और गाय को बचाने के लिए लड़ाई शुरु कर दी। इस बगावत के दौरान इन्होंने बैरकपुर रेजीमेंट के सबसे बड़े नेता की हत्या कर दी थी। जिसके पश्चात सभी भारतीयों के अंदर क्रांति की ज्वाला भड़क गई और यह खबर पूरे देश में आग जैसे फैल गई। पर ब्रिटिश ने उन्हें फांसी की सजा सुना दी और फिर वहीं पर उनके जीवन का अंत हो गया। एक अच्छी योजना न होने के चलते यह क्रांति सफल नही हुई। जिसके बाद भारत में कई योजनाएं बनाकर क्रांति शुरू की गई। लोगों को राजनीति से रूबरू कराने का काम किया गया। विभिन्न प्रकार की संस्थाओं की स्थापना की गई। 1867 में दादाभाई नारोजी ने ईस्ट इंडिया एसोशिएसन की स्थापना की व सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने इंडियन नेशनल एसोसिएशन की स्थापना 1876 में की। इससे भारतीयों में एकता लाने का कार्य किया गया। उसी समय इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई। जिसमें कई दिग्गज नेता शामिल हुए। चंपारण सत्याग्रह, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन व दांडी मार्च महात्मा गांघी के द्वारा हुए। जिससे अंग्रेजों के हुकूमतों की जड़ी कमजोर होने लगी।

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में पूरे देश के सभी जाति, घर्म व तबके के लोग शामिल हुए। और स्वतंत्रता आंदोलन की इस जिम्मेदारी को महात्मा गांधी संग बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, क्षी औरोबिंदो घोष, गोपाल कृष्ण गोखले, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, बटुकेश्र्वर दत्त, चंद्रशेखर आजाद जैसे आदि लोग अहिंसा से चलने के लिए तैयार नही थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने स्वयं का एक रास्ता बनाकर आजाद हिंद फौज की स्थापना कर दी। इसका संगठित सेना होने के कारण यह भारत को आजाद कराने के लिए कार्य करती थी। जापानी सेना के साथ मिलकर आजाद हिंद फौज ने कोहिमा, इंफाल व बर्मा जैसी जगहों पर ब्रिट्श सेनाओं से युद्ध किया। सिस्टर निवेदिता, मांतागिनी, श्रीमती एनी बैसंट व श्रीमती सरोजनी नायडू ने भी इस युद्ध में हिस्सा लिया। वहीं आंदोलन के समय ब्रिटिश शासन हिंदू मुस्लिम की एकता को खराब करने के लिए व लगातार जाति धर्म के नाम पर राज करने के प्रयास करता था। कई राजाओं और महापुरुषों जैसे श्री जगदीशचंद्र बोस, राजाराम मोहन राय, रविंद्रनाथ टैगोर, श्री रामकृष्ण परमहंस, काज़ी नजरूल, स्वामी विवेकानंद, द्विजेन्द्र लाल रॉय, इस्लामा आदि समाज के लोगों ने भी एक नयी दिशा देने के लिए कार्य किया।

इंडियन नेशनल कांग्रेस की ओर से स्वतंत्रता के पहले ब्रिटिश शासन के सामने पूरे स्वराज की मांग की गई थी। जिसके बाद भारत की आजादी 26 जनवरी को मनाई गई। तभी भारतीय वासियों से कांग्रेस ने अपील की कि अपना योगदान सविनय अवज्ञा आंदोलन में दें। जिसके बाद यह आंदोलन सफल हुआ। जब ब्रिटिशियों को यह ज्ञात हुआ कि अब भारत पर शासन करना मुश्किल है तो उनकी सरकार कमजोर पड़ गई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 1930-1946 तक 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस मनाया। जिससे सभी भारतीयों में एक जोश बन जाता था। महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु किया जिसमें महिलाओं द्वारा स्यवं ही शराब, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, सरकारी संस्थाओं व शिक्षा केंद्रों का बहिष्कार और नमक आंदोलन किए गए। अंग्रेजों का कानून था कि भारतीय न तो नमक बना सकते हैं और न ही खरीद। महात्मा गांधी ने अपने 12 अनुयायियों के साथ 1930 में साबरमति से दांडी तक करीब 200 मील तक का रास्ता पैदल ही तय किया था। जिसके बाद दांडी में समुद्र के पानी से नमक बनाया गया। और इसके बाद ही महात्मा गांधी को जेल जाना पड़ा। भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत महात्मी गांधी ने हरिजन पत्रिका में एक लेख लिखकर किया। और यह आंदोलन 9 अगस्त 1942 के शुरु हुआ। जिसको करो या मरो का नारा महात्मा गांधी ने दिया। हालांकि वो इस आंदोलन को अहिंसा से करना चाहते थे पर लोगों के सब्र खत्म हो चुके थे जिस कारण से इस आंदोलन को कई जगहों पर हिंसात्मक रूप से भी पूरा किया गया।

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