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IBA ने संसदीय समिति से कहा, जीएसटी के क्रियान्वयन के लिए अभी तैयार नहीं हैं बैंक

वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के क्रियान्वयन में अब एक माह से भी कम का समय बचा है। वहीं भारतीय बैंक संघ (आईबीए) ने एक संसदीय समिति को सूचित किया है कि बैंक अभी नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के क्रियान्वयन के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं।  आईबीए ने वित्त पर संसद की स्थायी समिति से कहा, ‘‘चूंकि जीएसटी को एक जुलाई, 2017 से लागू किया जाना है ऐसे में बैंकों को अपनी प्रणालियों तथा प्रक्रियाओं में काफी बदलाव करना होगा।

जीएसटी को एक जुलाई 2017 से लागू करने की बैंकों की तैयारियों पर सवालिया निशान है। आईबीए ने कहा कि बैंकों की ग्राहकों के लिए काफी सेवाएं केंद्रीयकृत हैं, जबकि कुछ अन्य स्थानीयकृत हैं। बैंकों को अपने मौजूदा ढांचे में व्यापक बदलाव करने होंगे, जो बैंकों के लिए काफी बड़ी चुनौती होगा।

संघ ने कहा कि उसने केंद्रीय पंजीकरण का मामला उठाया है। जीएसटी को आजादी के बाद का सबसे बड़ा कराधान सुधार माना जा रहा है। केंद्रीय उत्पाद, सेवा कर, वैट और अन्य स्थानीय शुल्क इसमें समाहित हो जाएंगे। माना जा रहा है कि इस नए अप्रत्यक्ष बिक्री कर से जीडीपी की वृद्धि दर में दो प्रतिशत का इजाफा होगा और इससे कर अपवंचना पर अंकुश लगेगा।

वहीं दूसरी ओर केंद्र सरकार की ओर से लागू किए जाने वाले माल एवं सेवा कर (जीएसटी) की प्रस्तावित दरों को लेकर कई व्यापारियों ने नाराजगी शुरू कर दी है। देशभर में मार्बल (पत्थर) का धंधा करने वाले अपने व्यापार पर जीएसटी की दरों को बढ़ाने को लेकर काफी नाराज हैं। केंद्र सरकार के इस प्रस्ताव के विरोध में उन्होंने अपने काम धंधे बंद कर दिए हैं। मार्बल व्यापारी तीन दिन के लिए जंतर-मंतर पर धरने पर बैठ गए हैं। उनका कहना है कि उनके धंधे पर 28 फीसद की दर से कर लगाया गया तो न केवल उनके व्यापार पर उसका असर पड़ेगा, बल्कि नए मकानों की कीमतों में काफी बढ़ोतरी हो जाएगी।

दिल्ली मार्बल डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संदीप भारद्वाज ने कहा कि दिल्ली सरकार ने अपने बजट में मार्बल और ग्रेनाइट व्यवसाय पर वैट की दर को 12.5 फीसद से 5 फीसद किया था जिससे दिल्ली सरकार को मार्बल व्यवसाय से पहले से ज्यादा राजस्व की प्राप्ति हुई। केंद्र सरकार की जीएसटी कमेटी ने मार्बल और ग्रेनाइट को विलासिता की वस्तु श्रेणी में रखा है, जबकि मौजूदा समय में हर श्रेणी का परिवार अपने घर में मार्बल और ग्रेनाइट लगाने का सपना देखता है। उन्होंने बताया कि 95 फीसद से ज्यादा पत्थर बचने वाले पूरे देश में छोटे धंधे की श्रेणी में आते हैं। ये व्यवसाय एक्साइज ड्यूटी के तहत नहीं आता है। राजस्थान जो मार्बल, ग्रेनाइट व नेचुरल स्टोन का प्रमुख उत्पादक राज्य है, वहां पर राज्य सरकार को वैट ड्यूटी 260 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष है और एक्साइज ड्यूटी मात्र 8.50 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष है।

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