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तीन राज्यों में लग सकता है 80 सीटों का झटका! 2019 में मुश्किल हो सकती है मोदी सरकार…

17वें लोकसभा के लिए आम चुनावों में अब एक साल का ही समय बचा है। ऐसे में सभी राजनीतिक दल खासकर विपक्षी दल मिशन 2019 के लिए सियासी समीकरणों पर जोर देने लगे हैं। उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उप चुनावों में सपा, बसपा के गठजोड़ से आए नतीजों से विपक्षी दल उत्साहित हैं। इन्हीं नतीजों के बाद आंध्र प्रदेश में बीजेपी की सहयोगी रही टीडीपी ने पीएम नरेंद्र मोदी की पार्टी को तीन तलाक देने में देर नहीं की। ऊपर से लोकसभा में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी ले आई। अगर 2019 में विपक्ष विशाल गठजोड़ बनाने में कामयाब रहा तो पीएम मोदी के लिए ना केवल जीत की राह मुश्किल होगी बल्कि सत्ता से भी उन्हें बेदखल होना पड़ सकता है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक तीन बड़े राज्यों में ही एनडीए को 80 से ज्यादा सीटों का नुकसान हो सकता है। सिर्फ यूपी में ही सपा और बसपा की दोस्ती से बीजेपी को 50 सीटों का नुकसान हो सकता है। साल 2014 के चुनावों में सपा ने पांच सीटें जीती थीं, जबकि बसपा क्लीनबोल्ड हो गई थी। अब उप चुनावों के बाद सपा सांसदों की संख्या सात हो गई है। कुछ समय पहले राजस्थान में भी कांग्रेस के दों सांसद उप चुनाव में जीत चुके हैं।

बिहार में भी विपक्ष ने बड़ा गठजोड़ किया तो बीजेपी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। बता दें कि बिहार में एनडीए की सहयोगी रही जीतनराम मांझी की पार्टी हम एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हो चुकी है। उनके अलावा एनडीए के दूसरे सहयोगी दल राष्ट्रीय लोक समता पार्टी की भी महागठबंधन में शामिल होने की अटकलें तेज हैं। राजद नेता और पूर्व मंत्री तेजप्रताप यादव ने एक दिन पहले ही इस बारे में कहा था कि आरएलएसपी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा से बात हो चुकी है। मौजूदा समय में आरएलएलपी के तीन सांसद हैं जिनमें से एक बागी हैं। इस पार्टी का राज्य की कोइरी समुदाय में अच्छी पैठ मानी जाती है, जिसका आबादी में करीब चार फीसदी योगदान है। जीतनराम मांझी दलित वोटों के माझी रहे हैं। उसकी भी आबादी (मांझी के साथ अन्य दलित जातियों) करीब 8 फीसदी के आसपास है। जदयू के बिखंडन से शरद यादव का गुट नीतीश से अलग हो चुका है। उसके कई दलित नेता जिनमें पूर्व स्पीकर उदय नारायण चौधरी, पूर्व मंत्री रमई राम, पूर्व मंत्री श्याम रजक भी शामिल हैं, नीतीश के खिलाफ हो चुके हैं। ऐसे में राजद, कांग्रेस, हम, रालोसपा और शरद यादव का जदयू मिलकर एक बड़ा गठबंधन बना सकता है। बिहार में लोकसभा की 40 सीट है जिस पर एनडीए के खाते में फिलहाल 33 सीट है। 29 सीटें ऐसी हैं जिस पर राजद और कांग्रेस के उम्मीदवार 2014 के चुनावों में नंबर दो स्थान पर थे।

गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनावों में बदले राजनीतिक समीकरण ने अपना असर दिखा दिया है। बीजेपी को 17 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। वहां अकेले चल रही कांग्रेस ने ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल के साठ गठबंधन किया था। अगर 2019 में कांग्रेस सपा, बसपा और एनसीपी को भी साथ लेकर एक गठबंधन के तहत चुनाव लड़ती है तो गठबंधन राज्य की करीब 13 लोकसभा सीटें जीत सकती है। फिलहाल सभी 26 सीटों पर बीजेपी के सांसद हैं।

महाराष्ट्र से लोकसभा की कुल 48 सीटें हैं। 2014 में बीजेपी और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था और कुल 41 सीटों पर जीत दर्ज की थी। उधर, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। बदले सियासी घटनाक्रम और राष्ट्रीय स्तर पर नेताओं के गठजोड़ की कवायद से अगर कांग्रेस और एनसीपी महाराष्ट्र में मिलकर चुनाव लड़ती है तो वोट पर्सेन्टेज के लिहाज से यह गठबंधन 23 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सकता है। बता दें कि पहले भी दोनों दल केंद्र और राज्य में एक साथ सरकार चला चुके हैं। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक इनके गठबंधन में अगर सपा-बसपा ने भी शिरकत की तो जीत का आंकड़ा और बढ़ सकता है। गौर करने वाली बात है कि एनडीए के घटक दल शिवसेना पहले ही एलान कर चुकी है कि उसकी राहें बीजेपी से जुदा हो चुकी हैं।

बीजेपी का गढ़ कहे जाने वाले अन्य राज्यों में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ है। इन तीनों राज्यों में लोकसभा की कुल 65 सीटें आती हैं जिनमें से 62 सीटों पर बीजेपी ने 2014 में जीत दर्ज की थी। 2019 में सियासत ने करवट ली और कांग्रेस ने सपा, बसपा और अन्य स्थानीय दलों से गठजोड़ किया तो आंकड़े बदल सकते हैं। इनके अलावा झारखंड (कुल सीट-14, बीजेपी के पास 12) और कर्नाटक (कुल सीट- 28, बीजेपी के पास- 17) में भी लोकसभा चुनावों में बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। गौरतलब है कि यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के रात्रिभोज में 20 दलों के नेता शामिल हुए थे और सभी ने वैकल्पिक राजनीति और एक व्यापक गठजोड़ को समय की जरूरत बताया था। एनसीपी प्रमुख शरद पवार, टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी, राजद अध्यक्ष लालू यादव इसकी पैरवी पहले से करते रहे हैं। मालूम हो कि 2014 के चुनावों में एनडीए को 543 में 337 सीटें मिली थीं।

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