भारत की प्रति व्यक्ति आय
एक क्षेत्र या देश की कुल आय उस क्षेत्र या देश के लोगों की संख्या से विभाजित है। राष्ट्रीय आय किसी देश की ओर से एक साल में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं की कीमत (प्राप्ती) होती है। जितनी ज्यादा राष्ट्रीय आय होगी उसी अनुसार किसी भी अर्थव्यवस्था या देश का विकास आगे बढ़ता है।
राष्ट्रीय आय के आंकड़ों से यह जाना जा सकता है कि किसी देश का विकास कितनी तेजी बढ़ रहा है।
प्रति व्यक्ति आय वह पैमाना है जिसके जरिए यह पता चलता है कि किसी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति की कमाई कितनी है। इससे किसी शहर, क्षेत्र या देश में रहने वाले लोगों के रहन-सहन का स्तर और जीवन की गुणवत्ता का पता चलता है। देश की आमदनी में कुल आबादी को भाग देकर प्रति व्यक्ति आय निकाली जाती है।
प्रति व्यक्ति आय वह पैमाना है जिसके जरिए यह पता चलता है कि किसी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति की कमाई कितनी है। इससे किसी शहर, क्षेत्र या देश में रहने वाले लोगों के रहन-सहन का स्तर और जीवन की गुणवत्ता का पता चलता है। देश की आमदनी में कुल आबादी को भाग देकर प्रति व्यक्ति आय निकाली जाती है।
आर्थिक विकास दर 2017-18 में 6.5 प्रतिशत के चार साल के निम्नतम होने की उम्मीद है, जो कि मोदी की अगुवाई वाली सरकार के तहत सबसे कम है, मुख्य रूप से कृषि और विनिर्माण क्षेत्रों के खराब प्रदर्शन के कारण।
अब जानिए क्या सच्चाई है की वाक़ई में प्रति व्यक्ति आय इतनी है ?
एक उदाहरण लेते है – यदि एक सरकारी नौकरी करने वाले की आय 1 लाख रूपए प्रति माह है और १ मजदूर की आय 10,000 रूपए प्रति माह है । इस प्रकार सरकारी नौकरी वाले की आय 1 लाख रूपए प्रति माह घट कर 55,000 रूपए प्रति माह हो गयी और मजदूर की आय 10,000 रूपए प्रति माह से बढ़कर 55,000 रूपए प्रति माह हो गयी। तो इसका मतलब कि मजदूर अब सरकारी आंकड़ों में 55,000 रूपए प्रति माह कमाता है ।
यही आंकड़े तो देश की आम जनता का बुरा हाल कर रहे है। अतः देश के आर्थिक मशीनरी को जमीनी हक़ीक़त का सामना करना चाहिए।उन्हें ये देखना चाहिए की सरकारी योजनाए गरीब तबके तक पहुँच रहा है या सिर्फ कागजी कार्यवाही ही चल रही है ?