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चुनाव प्रचार के लिए पैसा पानी की तरह और सेना के लिए रोना, वाह!

Money for election campaign, like water and cry for the army, wow!

@nsitharaman      

   

1. 2013-14 के वित्तीय वर्ष में बीजेपी की आय 673.81 करोड़ थी, जो 2014-15 में 296.62 करोड़ रुपये थी। पिछले वित्तीय वर्ष 2015 -2016 की तुलना में, जबकि बीजेपी की आय में 81 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 463.41 करोड़ रुपये है, एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के मुताबिक सत्तारूढ़ दल बीजेपी FY-2016-2017 के दौरान सात राष्ट्रीय दलों के बीच सबसे अमीर राजनीतिक दल है, जो चुनाव आयोग के लिए आईटी रिटर्न और राजनीतिक दलों द्वारा दायर की गई लेखापरीक्षा रिपोर्ट का विश्लेषण करती है। ADR रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान बीजेपी ने चुनाव और प्रचार के लिए कुल 606.64 करोड़ रुपये खर्च किए.
2. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार ने पिछले 46 महीने में विज्ञापनों पर 4343.26 करोड़ खर्च किए हैं। वैसे, इस मुद्दे पर आलोचना होने के बाद इस वर्ष इस तरह के प्रचार खर्च में 25 प्रतिशत कमी आई है। 2016-17 में मोदी सरकार ने कुल 1263.15 करोड़ रुपये प्रचार पर खर्च किए थे।
अब आते है असल मुद्दे पर, अभी आजकल हर न्यूज़ चैनल और अखबार ये कहते हुए देख रहे है कि -“भारतीय सैनिकों को अब अपनी वर्दी को खरीदने के लिए खुद पैसा खर्च करना पड़ सकता है।” इसके पीछे बड़ी वजह है बजट में कटौती। हमारी केंद्र सरकार के ऐसे क्या हालात हो गए कि उन्हें ऐसा फैसला लेना पड़ गया। सेना ने ऑर्डनेंस फैक्ट्रियों से खरीदारी में कटौती करने का फैसला इसलिए किया है ताकि जरूरी गोला-बारूद को खरीदने के लिए पैसा बचाया जा सके। इकोनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक ऑर्डनेंस फैक्ट्री से होने वाली खरीदारी को 94 से 50 प्रतिशत पर लाने की तैयारी है जिस कारण सैनिकों को अपनी वर्दी जूते समेत दूसरी चीजें खुद खरीदनी पड़ सकती है। दरअसल केंद्र सरकार ने गोला बारूद की आपातकालीन खरीदारी के लिए अतिरिक्त फंड जारी नहीं किया है। इस कारण सैनिकों की वर्दी की सप्लाई प्रभावित होगी. इसके अलावा इससे कुछ और चीजों की सप्लाई में भी अंतर आ सकता है। सेना के गोला बारूद भंडार को भरा पूरा रखने के लिए हजारों करोड़ के फंड की जरूरत है। गोला-बारूद और पुर्जों की कमी इसलिए भी है क्योंकि आयुध फैक्ट्रियां जरुरी मांग पूरी नहीं कर पा रही हैं। केंद्र ने इस फंड में कुछ कमी की है, ऐसे में सेना ने गोला बारूद खरीदने के लिए एक साहसिक और आत्मनिर्भर फैसला लेते हुए अपने दूसरे खर्चों में कटौती कर ऑर्डनेंस फैक्ट्री से होने वाली सप्लाई में कमी की योजना बनायी है। सेना के एक अधिकारी का कहना है कि आपातकालीन गोला-बारूद के लिए अब तक 5,000 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं और 6,739.83 करोड़ रुपये का भुगतान बकाया है। 10 (l) ऑर्डर समेत इस प्रोजेक्ट की लागत करीब 21,739.83 करोड़ रुपये है। उन्होंने यह भी बताया कि यह प्रोजेक्ट 5 नहीं बल्कि तीन साल के लिए हैं। सेना अब इस समस्या से जूझ रही है कि दो प्रॉजेक्ट्स के लिए भुगतान कैसे किया जाए क्योंकि केंद्र ने साफ कर दिया है कि इसकी व्यवस्था अपने बजट से करो।
एक वरिष्ठ सेना अधिकारी ने वित्त वर्ष 2018-19 के लिए दिए गए बजट के बारे में बताते हुए स्पष्ट किया कि सेना के पास आयुध फैक्ट्री का सप्लाई बजट कम करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। स्टॉक से जुड़े तीन प्रोजेक्ट में से अभी केवल एक शुरू हो सका है। उन्होंने यह भी बताया कि बीते कई सालों से फंड की कमी के चलते प्रोजेक्ट प्रभावित हुए हैं। एक अन्य अधिकारी के अनुसार सेना के सामने अब भी यह समस्या है कि बाकी दो प्रोजेक्ट के लिए फंड की व्यवस्था कैसे की जाए क्योंकि केंद्र द्वारा सेना को अपने बजट से खर्च करने को कहा गया है।
बीते दिनों सेना के इस कदम के खिलाफ आयुध फैक्ट्रियों ने प्रदर्शन किया था। सेना के उच्च अधिकारी ने रक्षा मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी से मिलकर उन्हें इसकी वजह भी बताई थी, लेकिन फिर भी इस कदम से सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि इन फैक्ट्रियों और कई अन्य छोटे और मझोले उद्योगों के पास सेना के पिछले ऑर्डर्स हैं, जिसको लेकर वे विवाद खड़ा सकते हैं। ऐसा तब देखने को मिल रहा है जब भारतीय सेना लड़ाकू विमान, राइफल्स, हथियार, बुलेट-प्रूफ जैकेट्स, होवित्जर, मिसाइल्स, हेलिकॉप्टर्स और युद्धपोतों की कमी की गहरी समस्या से जूझ रही है।
द डिप्लोमैट की रिपोर्ट कहती है, “सैन्य ताक़त के मामले में चीन भारत से काफ़ी आगे है। चीन की सैन्य क्षमता के सामने भारत कहीं नहीं टिकता है। चीन के पास भारत की तुलना में दस लाख ज़्यादा सैनिक हैं, पांच गुना ज़्यादा पनडुब्बियां और टैंक्स हैं। लड़ाकू विमान भी भारत से दोगुने से अधिक हैं और युद्धपोत भी लगभग दोगुने हैं। भारत के मुक़ाबले चीन के पास तीन गुना से ज़्यादा परमाणु हथियार हैं. वहीं चीन का रक्षा बजट 152 अरब डॉलर है तो भारत का महज 51 अरब डॉलर ही है।” इस बार के बजट को लेकर भी कहा जा रहा है कि अर्थव्यवस्था की सेहत ठीक नहीं होने की वजह से सरकार रक्षा बजट पर ज़्यादा खर्च करने की स्थिति में नहीं है.

शायद अब हमे कुछ ज्यादा कहने कि जरुरत नहीं है। जहाँ एक तरफ RTI के अनुसार सरकार ने पिछले 46 महीने में विज्ञापनों पर 4343.26 करोड़ खर्च किए हैं, वही मात्र 6 हज़ार करोड़ के लिए रोना रो रही है। भारत सरकार को ये ध्यान देना चाहिए सुरक्षा और आत्मसम्मान से बढ़कर आपका कार्य-प्रचार नहीं है, क्यूंकि अगर देश ही न रहा तो प्रचार किसका और कहाँ का करेंगे. नेताओं के खून में ही है। शोर मचाते बहुत है मगर औकात सामने आ ही जाती है। अगर देश ही सुरक्षित न रहा तो कैसा कौन सा और काहे का यदि मन में दृढ संकल्प हो तो आप गैर जरूरी ख़र्चों और बहुत ढिंढोरा पीटने वाला ख़त्म करके भी आप सेना की मुश्किलें काम कर सकते है।

आत्मसम्मान से समझौता न करने वाली भारतीय सेना ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वो ढफली बजाने में नहीं काम में विश्वाश रखते है, इसी वजह से SI News Today परिवार कि तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं।

 

the authorSunil Maurya
Karm se Engineer Mun se Social Activist

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