calcutta high court
सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश पर आज रोक लगा दी जिसमें उसने पश्चिम बंगाल राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) से पंचायत चुनाव लड़ने के लिए ई-मेल के जरिए दाखिल नामांकन पत्र स्वीकार करने के लिए कहा था. साथ ही राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि वह उन उम्मीदवारों को विजेता नहीं घोषित करे जो निर्विरोध जीत चुके हैं.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने ई-मेल के जरिए नामांकन पत्र दाखिल करने की अनुमति देने और राज्य में पंचायत चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी के तकरीबन 17000 उम्मीदवारों के निर्विरोध निर्वाचन को ‘चिंताजनक’ बताया.
हालांकि, पीठ ने इस दलील से सहमति नहीं जताई कि चुनाव प्रक्रिया में खलल पड़ा है और इसपर रोक लगा दी जानी चाहिए. ऐसे अनेक फैसले हैं जिसमें कहा गया है कि एकबार चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने पर कोई भी अदालत इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती है.
एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद इसमें हस्तक्षेत नहीं कर सकते
सीजेआई ने कहा कि एकबार चुनाव प्रक्रिया शुरू हो जाने पर इसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है. मैंने यह बात सुबह भी एक मामले में कही है.
सीपीएम और बीजेपी के वकीलों ने आरोप लगाया कि उनके कई उम्मीदवारों को नामांकन पत्र दाखिल करने की अनुमति नहीं दी गई. इसकी वजह से सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के 34 फीसदी उम्मीदवार निर्विरोध चुनाव जीत गए.
पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश में सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम को जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में पढ़ा गया है. होईकोर्ट का राज्य निर्वाचन आयोग को ई-मेल के जरिए दायर नामांकन पत्र को स्वीकार करने का निर्देश देना और 34 फीसदी उम्मीदवारों का निर्विरोध जीतना -दोनों बातें चिंताजनक है.
पीठ ने कहा कि कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगनी चाहिए. राज्य निर्वाचन आयोग उन उम्मीदवारों के नतीजे की घोषणा नहीं करे, जो निर्विरोध जीत गए हैं.
पीठ ने राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि वह पश्चिम बंगाल में 14 मई को ‘स्वतंत्र एवं निष्पक्ष’ तरीके से पंचायत चुनाव संपन्न कराए.
हालांकि, राज्य निर्वाचन आयोग की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने जीते हुए उम्मीदवारों के संबंध में दलील का विरोध करते हुए कहा कि यह मुकदमे का हिस्सा नहीं है.
ई-मेल के जरिए भेजे नामांकन को स्वीकार करना बेतुका
ई-मेल के जरिए दायर नामांकन पत्रों को स्वीकार करने के हाईकोर्ट के आदेश को सर्वाधिक बेतुका बताया. उन्होंने कहा कि नामांकन पत्र निर्वाचन अधिकारी (आरओ) के समक्ष दायर किए जाते हैं और उम्मीदवार दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हैं. इसे दाखिल किए जाने के बाद नामांकन पत्रों की जांच की जाती है. इसके बाद उसे या तो स्वीकार कर लिया जाता है या खारिज कर दिया जाता है.
उन्होंने कहा कि यहां हाईकोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग को सीधे नामांकन पत्रों को स्वीकार कर लेने को कहा. उन्होंने कहा कि फिर कानून के तहत निर्धारित प्रक्रिया का क्या होगा.
सुनवाई शुरू होने पर सीपीएम की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक भान ने संवैधानिक व्यवस्था का उल्लेख करते हुए कहा कि राज्य में मौजूदा परिस्थितियों में चुनाव लड़ने के अधिकार का हनन किया जा रहा है और यह इस तथ्य से दिखता है कि 34 फीसदी उम्मीदवार निर्विरोध चुनाव जीत गए हैं.
राज्य निर्वाचन आयोग कर रहा राज्य सरकार के इशारे पर काम
बीजेपी की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता पी एस पटवालिया ने कहा कि राज्य में पंचायत की तकरीबन 54000 सीटों में से 17000 सीटों पर कोई मुकाबला नहीं हुआ. यह राज्य में जमीनी स्थिति का संकेत देता है.
जब दोनों पार्टियों के वकीलों ने यह आरोप लगाया कि राज्य निर्वाचन आयोग राज्य सरकार के इशारे पर काम कर रहा है तो पश्चिम बंगाल निर्वाचन आयोग ने इसका कड़ा विरोध किया.
पीठ ने साफ कर दिया कि एकमात्र सवाल यह है कि क्या नामांकन पत्र इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से दाखिल किया जा सकता है और क्या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम को जन प्रतिनिधित्व कानून में पढ़ा जा सकता है. इसके बाद पीठ ने राज्य निर्वाचन आयोग की याचिका पर सुनवाई की अगली तारीख तीन जुलाई को निर्धारित कर दी.
राज्य निर्वाचन आयोग (एसईसी) ने कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था. हाईकोर्ट ने उन उम्मीदवारों का नामांकन पत्र स्वीकार करने का निर्देश दिया था जिन्होंने पंचायत चुनावों के लिए निर्धारित अवधि के भीतर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से अपना पर्चा भर दिया था.
निर्वाचन आयोग ने हाईकोर्ट के आठ मई के आदेश पर यह कहते हुए रोक लगाने का अनुरोध किया था कि इससे ‘अपूरणीय नुकसान और क्षति’ होगी.