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राष्ट्रगीत का दर्जा पाने के लिए वंदे मातरम् का इतिहास बड़ा ही दिलचस्प

The history of Vande Mataram is very interesting to get the status of the national Song.

      

बंकिम चंद्र ने वंदे मातरम् की रचना 1870 के दशक में की थी। उन्होंने भारत को दुर्गा का स्वरूप मानते हुए देशवासियों को उस माँ की संतान बताया। भारत को वो माँ बताया जो अंधकार और पीड़ा से घिरी है। उसके बच्चों से बंकिम आग्रह करते हैं कि वे अपनी माँ की वंदना करें और उसे शोषण से बचाएँ।

भारत को दुर्गा माँ का प्रतीक मानने के कारण आने वाले वर्षों में वंदे मातरम् को मुस्लिम लीग और मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग शक की नज़रों से देखने लगा। इसी विवाद के कारण भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू वंदे मातरम् को आज़ाद भारत के राष्ट्रगान के रूप में नहीं स्वीकार करना चाहते थे। मुस्लिम लीग और मुसलमानों ने वंदे मातरम् का इस वजह से विरोध किया था कि वो देश को भगवान का रूप देकर उसकी पूजा करने के ख़िलाफ़ थे।

नेहरू ने स्वयं रवींद्रनाथ ठाकुर से वंदे मातरम् को स्वतंत्रता आंदोलन का मंत्र बनाए जाने के लिए उनकी राय माँगी थी। रवींद्रनाथ ठाकुर बंकिम चंद्र की कविताओं और राष्ट्रभक्ति के प्रशंसक रहे थे और उन्होंने नेहरू से कहा कि वंदे मातरम् के पहले दो छंदों को ही सार्वजनिक रूप से गाया जाए।

हालांकि बंकिमचंद्र की राष्ट्रभक्ति पर किसी को शक नहीं था। सवाल यह था कि जब उन्होंने ‘आनंदमठ’ लिखा उसमें उन्होंने बंगाल पर शासन कर रहे मुस्लिम राजाओं और मुसलमानों पर ऐसी कई टिप्पणियाँ की गई थीं जिससे हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच तनाव पैदा हुआ। वंदे मातरम् को हालाँकि कई वर्ष पहले एक कविता के रूप में लिखा गया था लेकिन उसे बाद में प्रकाशित हुए आनंदमठ उपन्यास का हिस्सा बनाया गया।

आनंदमठ की कहानी 1772 में पूर्णिया, दानापुर और तिरहुत में अंग्रेज़ और स्थानीय मुस्लिम राजा के ख़िलाफ़ सन्यासियों के विद्रोह की घटना से प्रेरित है। आनंदमठ का सार ये है कि किस प्रकार से हिंदू सन्यासियों ने मुसलमान शासकों को हराया। आनंदमठ में बंकिम चंद्र ने बंगाल के मुस्लिम राजाओं की कड़ी आलोचना की। एक जगह वो लिखते हैं, “हमने अपना धर्म, जाति, इज़्ज़त और परिवार का नाम खो दिया है। हम अब अपनी ज़िंदगी ग़वाँ देंगे। जब तक मुसलमानों को भगाएँगे नहीं तब तक हिंदू अपने धर्म की रक्षा कैसे करेंगे।”

इतिहासकार तनिका सरकार की राय में “बंकिम चंद्र इस बात को मानते थे कि भारत में अंग्रेज़ों के आने से पहले बंगाल की दुर्दशा मुस्लिम राजाओं के कारण थी।” ‘बांग्ला इतिहासेर संबंधे एकटी कोथा’ में बंकिम चंद्र ने लिखा, “मुग़लों की विजय के बाद बंगाल की दौलत बंगाल में न रहकर दिल्ली ले जाई गई।”

लेकिन प्रतिष्ठित इतिहासकार के. एन. पणिक्कर के मुताबिक़ “बंकिम चंद्र के साहित्य में मुस्लिम शासकों के ख़िलाफ़ कुछ टिप्पणियों के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि बंकिम मुस्लिम विरोधी थे। आनंदमठ एक साहित्यिक रचना है। बंकिम चंद्र अंग्रेज़ी हुकूमत में एक कर्मचारी थे और उन पर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लिखे गए हिस्से ‘आनंद मठ’ से निकालने का दबाव था। 19वीं शताब्दी के अंत में लिखी इस रचना को उस समय के मौजूदा हालात के संदर्भ में पढ़ना और समझना ज़रूरी है।”

जब आज़ाद भारत का नया संविधान लिखा जा रहा था तब वंदे मातरम् को न राष्ट्रगान के रूप में अपनाया गया और न ही उसे राष्ट्रगीत का दर्जा मिला। लेकिन संविधान सभा के अध्यक्ष और भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने 24 जनवरी 1950 को घोषणा की कि वंदे मातरम् को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया जा रहा है।

-bbc

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