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खाप पंचायतों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने खींची सीमारेखा! कहा ऐसा…

उच्चतम न्यायालय ने स्वेच्छा से अंतर-जातीय और अंतर-आस्था विवाह करने वाले वयस्कों के मामले में खाप पंचायत जैसे गैरकानूनी समूहों के दखल को पूरी तरह गैरकानूनी करार देते हुये इन पर पाबंदी लगा दी है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इस तरह के हस्तक्षेप को रोकने के लिये दिशा निर्देश प्रतिपादित किये हैं और कहा है कि इस संबंध में संसद से कानून बनने तक ये प्रभावी रहेंगे।

शीर्ष अदालत की आज की व्यवस्था से अंतर-जातीय और परस्पर अलग-अलग धर्म के वयस्कों को स्वेच्छा से विवाह करने वाले उन दपंतियों को बड़ी राहत मिली है जिन्हें अक्सर ऐसी शादी करने पर विरोध का सामना करना पड़ता है। इतना ही नहीं कई बार तो परिवार की इज्जत के नाम पर इनकी हत्या तक कर दी जाती है। शीर्ष अदालत ने 2010 में गैर सरकारी संगठन शक्ति वाहिनी द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनाये गये फैसले में खाप पंचायतों पर पाबंदी लगाने के साथ ही दिशा निर्देश प्रतिपादित किये हैं।

इस संगठन ने ऐसे दपंतियों को सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था ताकि इज्जत के नाम पर उनकी हत्या न की जा सके। पीठ ने इस महीने के प्रारंभ में जनहित याचिका पर सुनवाई पूरी करते हुये टिप्पणी की थी कि जब अलग-अलग धर्म, जाति, पृष्टभूमि वाले दो वयस्क परस्पर सहमति से विवाह करते हैं तो कोई भी रिश्तेदार या तीसरा पक्ष इसमें न तो हस्तक्षेप कर सकता है ओर न ही उन्हें धमकी दे सकता है या हिंसा का सहारा ले सकता है।

बता दें कि देश में कई ऑनर किलिंग के मामले सामने आए हैं। साल 2016 में तमिलनाडू में एक अलग जाति के लड़के से शादी करने के कारण लड़की के परिजनों ने बेटी के सामने उसके पति की हत्या करवा दी थी। वहीं बिहार में प्रेम विवाह करने पर पंचायत ने लड़की से थूंक चटवाया था तो वहीं लड़के से ऊठक-बैठक लगवाए थे। इसी तरह के कई मामले सामने आए हैं जहां पर पंचायत द्वारा तुगलकी फरमान सुनाते हुए शादीशुदा जोड़ों को प्रताड़ित किया गया है।

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