This scientist of ISRO had found the allegation of espionage, proved innocence, wasted the whole life
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देश का जस्टिस सिस्टम इतना मरियल हो चुका है कि अब लोगों को जल्द न्याय मिलने की आशा छोड़ देनी चाहिए, ये एक अकेले का अविश्वाश नहीं इस खोखले सिस्टम का जहॉ न्याय के लिए बोलै जाता है कि न्याय की देवी की आँखों पर पट्टी बंधी तो है मगर वो सब देख सकती हैं या यहाँ देर है पर अंधेर नहीं. 3 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में रंजन गोगोई बतौर नए चीफ जस्टिस शपथ ग्रहण करने जा रहे हैं. हो सकता है वो न्याय व्यवस्था में काफी सुधार या बदलाव लाने की कोशिश करें हो सकता है कि उनके आने के बाद शायद उन बेगुनाहों के दिन भी बदलें, जिनकी ज़िंदगी कोर्ट के चक्कर लगाते कट जाती है.
आज हम बात करेंगे इस खोखले सिस्टम की ज्यादतियों का शिकार हुए अपने जीवन के अनमोल 24 इस बात के लिए इस आग में झोंक दिए कि उन्होंने कोई अपराध नहीं किया वे बेक़सूर हैं. बात हो रही है ISRO के पूर्व वैज्ञानिक का नाम एस. नंबी नारायणन है. वो इसरो के क्रायोजेनिक डिवीज़न में काम करते थे. उन अंतिरक्ष कार्यक्रमों के लिए काम कर रहे थे, जिनमें भविष्य में इंसानों को अंतरिक्ष में भेजा जाना था. सरल भाषा में समझिए कि वो 1970 के समय से लिक्विड फ्यूल वाले इंजनों के क्षेत्र में काम कर रहे थे, जो आगे चलकर देश को बहुत फायदा पहुंचाते.
हुआ कुछ यूँ कि 1994 में नंबी नारायणन और डी. शशिकुमार समेत चार लोगों ने इसरो के स्पेस प्रोग्राम के टॉप सीक्रेट्स पाकिस्तान को बेच दिए थे. केरल पुलिस ने अक्टूबर 1994 में मालदीव की मरियम रशीदा को वीजा पूरे हो जाने के बाद भी भारत में रहने के लिए तिरुवंतपुरम से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने इसरो के वैज्ञानिकों के खिलाफ केस बनाया. कहा गया कि वैज्ञानिकों ने मालदीव की औरतों के ज़रिए पाकिस्तान को क्रायोजेनिक इंजनों की खुफिया जानकारी बेची थी.
केरल पुलिस और IB के द्वारा जांच रिपोर्ट संदिग्ध लगने पर इस मामले की फिर से CBI ने जांच की. दो साल बाद 1996 में CBI ने क्लोज़र रिपोर्ट में कहा कि इसरो की सूचनाओं की कोई जासूसी नहीं हुई थी. नंबी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं. ऐसा कोई सबूत नहीं है कि मालदीव की उन औरतों ने नंबी को कोई पैसे दिए थे. CBI ने ये भी कहा कि इंटेलिजेंस ब्यूरो ने गलत तरीके से जांच की थी और नंबी पर लगे आरोपों की ढंग से जांच नहीं की थी, जिसके कारण वैज्ञानिकों की इतनी बदनामी हुई.
नंबी पर आरोप झूठे निकले. उनकी गिरफ्तारी गैर-कानूनी मानी गई. नंबी बदनाम हो चुके थे. लगभग २ महीने उन्हें डी. शशिकुमार और चार अन्य लोगों को जेल में रहना पड़ा था. उन्होंने मेंटल ट्रॉमा सहा था, उसके लिए वो हर्जाना चाहते थे. एक लम्बी लड़ाई के बाद नंबी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और आखिरकार उन्हें 50 लाख रुपए मुआवजा दिए जाने का आदेश दिया गया.
1994 में केरल के मुख्यमंत्री के. करुणाकरण को इस केस को लेकर उन्हें CM पद छोड़ना पड़ गया था. हालाँकि केरल के CM बने कांग्रेस के नेता ओमान चांडी कहते हैं कि करुणाकरण का इस्तीफा इसरो के कारण नहीं, राज्यसभा कैंडिडेट्स के सिलेक्शन में असहमतियां होने के कारण हुआ था.