featuredदेश

पत्रकारिता क्या है और असल में पत्रकार है कौन?

A Very Special Story – What is journalism and who is actually a journalist? 

पत्रकारिता शब्द अंग्रेजी के ‘जर्नलिज्म’ का हिन्दी रूपांतर है। शब्दार्थ की दृष्टि से ‘जर्नलिज्म’ शब्द ‘जर्नल’ से निर्मित है और इसका अर्थ है ‘दैनिकी’, ‘दनै न्दिनी’, ‘रोजनामचा’ अर्थात जिसमें दैनिक कार्यों का विवरण हो। आज जर्नल शब्द ‘मैगजीन’, ‘समाचार पत्र‘, ‘दैनिक अखबार’ का द्योतक हो गया है। ‘जर्नलिज्म’ यानी पत्रकारिता का अर्थ समाचार पत्र, पत्रिका से जुड़ा व्यवसाय, समाचार संकलन, लेखन, संपादन, प्रस्तुतीकरण, वितरण आदि होगा। आज के युग मे पत्रकारिता के अभी अनेक माध्यम हो गये हैं, जसैे-अखबार, पत्रिकाएँ, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता, सोशल मीडिया, इंटरनेट आदि।
हिन्दी में भी पत्रकारिता का अर्थ भी लगभग यही है। ‘पत्र‘ से ‘पत्रकार’ और फिर ‘पत्रकारिता’ से इसे समझा जा सकता है। वृहत हिन्दी शब्दकोश के अनुसार ‘पत्र‘ का अर्थ चिट्ठी, कागज, वह कागज जिस पर कोर्इ बात लिखी या छपी हो, वह कागज या धातु की पट्टी जिस पर किसी व्यवहार के विषय में कोर्इ प्रामाणिक लेख लिखा या खुदवाया गया हो, किसी व्यवहार या घटना के विषय का प्रमाणरूप दस्तावेज, समाचार पत्र, अखबार है। ‘पत्रकार’ का अर्थ समाचार पत्र का संपादक या लेखक। और ‘पत्रकारिता’ का अर्थ पत्रकार का काम या पेशा, समाचार के संपादन, समाचार इकट्ठे करने आदि का विवेचन करनेवाली विद्या। वृहत शब्दकोश मे साफ है कि पत्र का अर्थ वह कागज या साधन जिस पर कोर्इ बात लिखी या छपी हो जो प्रामाणिक हो, जो किसी घटना के विषय को प्रमाणरूप पेश करता हैऔर पत्रकार का अर्थ उस पत्र, कागज को लिखनेवाला, संपादन करनेवालाऔर पत्रकारिता का अर्थ उसका विवेचन करनेवाली विद्या।
जेम्स मैकडोनल्ड के शब्दों में – “पत्रकारिता को मैं रणभूमि से ज्यादा बड़ी चीज समझता हूँ। यह कोर्इ पेशा नहीं वरन पेशे से ऊँची कोर्इ चीज है। यह एक जीवन है, जिसे मैंने अपने को स्वेच्छापूर्वक समर्पित किया।”
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है। इसने लोकतंत्र में यह महत्चपूर्ण स्थान अपने आप हासिल नहीं किया है बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियो के प्रति पत्रकारिता के दायित्वो के महत्व को देखते हुए समाज ने ही यह दर्जा दिया है। लोकतंत्र तभी सशक्त होगा जब पत्रकारिता सामाजिक जिम्मदेारियो के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निर्वाह करे। पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की भूमिका निर्वाह करे।
चूंकि यह एक ऐसा कलात्मक सेवा कार्य है जिसमें सामयिक घटनाओ को शब्द एवं चित्र के माध्यम से पत्रकार रोज दर्ज करते चलते हैं तो इसे एक तरह से दैनिक इतिहास लेखन कहा जाएगा। यह काम ऊपरी तौर पर बहुत आसान लगता है लेकिन यह इतना आसान होता नहीं है। अपनी पूरी स्वतंत्रता के बावजदू पत्रकारिता सामाजिक और नैतिक मूल्यो से जुड़ी रहती है।
आज जब सब जगह आगे निकल जाने कि प्रतिस्पर्धा है तो पत्रकार भी अलग अलग विचारधारा से प्रभावित होकर पत्रकारिता करने लगे है और वे आपस में विचारों के आधार पर बंटे हुए है। पत्रकारिता का असली मतलब ही है कि जनता का हित ही सर्वोपरि है। कौन किस विचार का है यह पत्रकारों के लिए इतना महत्वपूर्ण नहीं होना चाहिए। किसी सरकार को बनाना या किसी सरकार को गिराना, यह पत्रकार का या पत्रकारिता का काम नहीं है, यह जनता का काम है। पत्रकारिता का एक ही पक्ष होता है- जनपक्ष। कई न्यूज़ चैनल, अखबार, सोशल मीडिया और वेब-नेटवर्क्स के जरिये किसी विशेष विचारधारा से प्रभावित खबर दिखाई या चलायी जाती है, जब उनके प्रमुखों से बात पूछी जाती है कि वो ऐसे किसी एजेंडे के तहत खबर क्यों चला रहे है तो उनका सीधा जवाब होता है कि- हम तो इसलिए वो प्रोग्राम दिखाते हैं कि क्योंकि जनता देखना चाहती है। इस तरह कि पत्रकारिता समाज और देश दोनों के लिए घातक है।
पत्रकार या पत्रकारिता का काम पिछलग्गू बनना नहीं है, समाज को नेतृत्व प्रदान करना है। टीआरपी निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए बहुत बड़ी चुनौती है। हमें रीडरशिप नहीं हमें लीडरशिप का पोजिशन चाहिए। टीआरपी, सर्कुलेशन की रेस में हम भूल जाते हैं कि समाज को बौद्धिक नेतृत्व देना ही हमारा सबसे बड़ा काम है।

Leave a Reply

Exit mobile version