What is the NRC?
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1947 में जब भारत आजाद हुआ तो सरकार को नागरिकों की पहचान की जरुरत मह्शूश हुई. जिसके लिए 1951 में पहली जनगणना हुई. गाँव-गाँव जाकर हर एक व्यक्ति के बारे में बुनियादी जानकारी जुटाई गई, जिसके आधार पर उनकी नागरिकता की पहचान हुई. NRC के इन आँकड़ों को deputy comissioner और sub-divisional officer के दफ्तर में रखा जाता था. लेकिन गृह मंत्रालय के आदेश के बाद 1960 में इसे पुलिस को सौंप दिया गया, जिसके बाद NRC को कभी update नहीं किया गया.
वही जब यह मामला 2013 में सुप्रीम कोर्ट पहुँचा तो सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2014 में आदेश दिया कि NRC के updation का काम 31 जनवरी, 2016 तक पूरा हो जाना चाहिए. मगर NRC authority इस आदेश का अनुपालन नहीं कर पाई. जिसके बाद से सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में NRC के updation का काम चल रहा है.
बता दें, 1955 के सिटिजनशिप एक्ट के तहत केंद्र सरकार पर देश में हर परिवार और व्यक्ति की जानकारी जुटाने की जिम्मेदारी है. इस एक्ट के सेक्शन 14ए में 2004 में संशोधन किया गया था, जिसके तहत हर नागरिक के लिए अपने आप को नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस यानी एनआरसी में रजिस्टर्ड कराना जरूरी बनाया गया था.
जैसा की हम जानते हैं कि NRC में भारतीय नागरिकों का लेखा-जोखा दर्ज होता है. वही असम इकलौता राज्य है जहाँ 2005 में केंद्र, राज्य और All Assam Students Union के बीच समझौते के बाद सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू करके असम के नागरिकों की दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया शुरू की गयी थी.
वही सुप्रीम कोर्ट ने दो करोड़ दावों की जांच में करीब 38 लाख लोगों के दस्तावेजो को संदिग्ध पाया था. जिसके बाद कोर्ट ने 31 December 2018 तक NRC की सूचि जारी करने का निर्देश दिया था. ऐसा माना जा रहा है कि असम में बांग्लादेश से आये कई लोग अवैध रूप से रह रहे हैं. इसलिए NRC का मुद्दा उठाया जा रहा है.