Who is responsible for the death of patients during the conflict between doctors and employees??
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लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में कर्मचारियों और जूनियर डॉक्टरों के बीच हुऐ, विवाद ने कई पहलू लाकर खड़े कर दिए हैं। सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या ये वही डॉक्टर हैं, जिन्हें इंसान भगवान का दूसरा रूप कहता है?
इस आपसी खींचातानी, लड़ाई झगड़े में कई मौतें हो गई, आखिर इसका जिम्मेदार कौन होगा? क्या मेडिकल कॉलेज के कर्मचारीगण या जूनियर डॉक्टर या सरकार? यह विषय सोच का है कि हम किस तरफ जा रहे हैं??
जिन लोगों ने हॉस्पिटल में आकर अपनी जान गवा दी, उसकी जिंदगी तो कोई नहीं ला सकता ना ही हॉस्पिटल के कर्मचारी, न डॉक्टर न तो सरकार। इन मरीजों या उनके परिवारीजनों ने तो सपने में भी नहीं सोचा होगा कि ऐसी विकराल परिस्थिति आ सकती है। तो फिर इतना बड़ा रिस्क लेने का हक किसको दे दिया गया है। आपसी लड़ाई झगड़े में नुकसान हमेशा निर्दोषों का ही होता आया है। उस मासूम नन्हीं सी परी जिसने आज अपनी जान गवा दी, उसके मां-बाप क्या सोच रहे होंगे? किस उम्मीद से उस परी को वह हॉस्पिटल लेकर आए होंगे कि मेरी बच्ची ठीक हो जाएगी और मैं उसे अच्छे-अच्छे लेकर अपने घर चला जाऊंगा। क्या बीत रही होगी उनके घर वालों पर? क्या यह डॉक्टरों ने या कर्मचारियों ने सोचा है ? इनके घर में भी बच्चे होते हैं।
ऐसे बच्चों में इन सबको इन मरीजों में अपने बच्चे ही दिखाई देते हैं, दूर दूर से आए हुए लोगों के बच्चे परिजन व नाते रिश्तेदार नहीं दिखाई देते हैं? अगर नहीं दिखाई देते हैं, तो धिक्कार है। ऐसे कर्मचारियों पर ऐसे डॉक्टरों पर जो सिर्फ अपने बच्चों और नाते रिश्तेदारों को ही अपना सब कुछ समझते है। गंभीर चिंता का विषय है कि ऐसे कर्मचारियों और डॉक्टरों में इतनी हीन भावना कहां से आ गई। कर्मचारियों की बात छोड़ दीजिए, मैं उन डॉक्टरों से पूछना चाहता हूं- आप लोगों के अंदर संवेदनाएं होनी चाहिए कुछ में होती भी है, तो ऐसे मौके पर कहां चली जाती हैं? आपकी आत्मा क्यों मर जाती हैं? क्या कभी आपने अपने दिल के अंदर झांक कर देखा है। अपने वर्चस्व की लड़ाई में आप लोग सब कुछ भूल क्यों जाते हैं कि आप दूसरों की जिंदगी बचाने के लिए कार्यरत हैं, जिन्दगी लेने के लिए नहीं।
क्योंकि बचपन से सुनता आया हूं कि डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप होते हैं, लेकिन भगवान के इस दूसरे रूप को देख कर बहुत ही शर्म आती हैं। एक डॉक्टर अपनी जिम्मेदारियों को भूलकर ऐसी हरकतें शुरू कर दी ।
काश इस वर्चस्व की लड़ाई में आपकी अंतरात्मा आपसे कहती कि लड़ाई एक तरफ लेकिन मरीजों की जान एक तरफ है, तो शायद कुछ मरीजों की जान बच सकती थी। लेकिन नहीं, यहां तो ज्यादातर लोगों को अपना वर्चस्व दिखाना ही प्राथमिकता पर होता है। आप सब लोग अपनी अपनी जगह पर सही है, फिर गलत कौन है ??
बात घूम फिर कर वहीं आ जाती है। सब एक दूसरे पर दोषारोपण करके अपना पल्ला झाड़ना चाहते हैं।
लेकिन जिनकी मौत हो गई है, क्या उनकी जिंदगी बच कर वापस आएंगी?? डॉक्टर बनना तो आसान होता है लेकिन डॉक्टर के असली जिम्मेदारी को समझना आसान नहीं हैं! अगर बनना है, तो भगवान का दूसरा रूप बनिये जिसे सब मानते हैं। अपने अंदर मरी हुई आत्मा को जगाइए और फिर भविष्य में होने वाले ऐसे नतीजों को मत दुहराइये। जो भी आप लोगों के अपने मुद्दे हो, उसको आप लोग आपस में समझिये, लेकिन किसी मरीज की जान से खिलवाड़ मत कीजिए। आप में से किसी को हक नहीं है कि मरीजों की जान से खिलवाड़ करें।
ऐसे प्रकरण में सरकार को बहुत ही ठोस कदम उठाने चाहिए। ऐसे नियम और कानून लाने चाहिए कि वह कर्मचारी हो या डॉक्टर जिनकी वजह से भी इतनी जाने जाती है, उसके ऊपर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाए। ऐसी कार्रवाई जिससे उसकी रूह कांप उठे, ताकि भविष्य में कोई भी ऐसा करने से पहले 100 बार सोचे कि मैं क्या करने जा रहा हूं। अब देखना यह है, कि वर्तमान सरकार ऐसे गैर जिम्मेदार कर्मचारियों पर क्या कार्यवाही करती है???
मै फिर यही बात दोहराना चाहता हूँ कि – “आज लखनऊ मेडिकल कॉलेज में होने वाली मौत का जिम्मेदार कौन है??”
— रईस (पत्रकार) (08/06/2018)
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