चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पाप मोचनी एकादशी कहा जाता है। माना जाता है इस दिन व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत के बारे में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया था। पापमोचनी एकादशी व्रत करने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष का वास करता है। इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। इस साल यह एकादशी 13 मार्च को है। आइए इस व्रथ की कथा के बारे में जानते हैं-
व्रत कथा- पौराणिक कथा के अनुसार एक बार एक ऋषि कठोर तपस्या में लीन थे। ऋषि की तपस्या को देखकर देवराज इंद्र घबरा गए और उन्होंने इस तपस्या को भंग करने का निश्चय किया। ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए इन्द्रदेव ने मंजुघोषा नाम की खूबसूरत अप्सरा को भेजा। मेधावी ऋषि अप्सरा को देखकर मुग्ध हो गए और अपनी तपस्या को भंग कर दिया। मेधावी ऋषि शिव भक्ति छोड़कर मंजुघोषा के साथ रहने लगे। कई वर्षों बाद मंजुघोषा ने ऋषि से स्वर्ग वापस जाने की आज्ञा मांगी। इसके बाद ऋषि को अपनी भक्ति भंग हो जाना का अहसास हुआ और अपने आप पर ग्लानि होने लगी।
अपनी ग्लानि का कारण अप्सरा को मानकर परेशान ऋषि ने अप्सरा को पिशाचिनी हो जाने का शाप दिया। इससे दुखी अप्सरा ऋषि से शाप से मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगी। इसी समय देवर्षि नारद वहां आये और अप्सरा एवं ऋषि दोनों को पाप से मुक्ति के लिए पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने के बारे में बताया। इसके बाद नारद द्वारा बताये गये विधि-विधान से दोनों ने पाप मोचिनी एकादशी का व्रत किया, जिससे वह मुक्त हो गए। शास्त्रों के मुताबिक इस एकादशी को व्रत करने और कथा सुनने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। ब्रह्महत्या, सोने की चोरी और सुरापान करनेवाले महापापी भी इस व्रत से पापमुक्त हो जाते हैं। इस व्रत को बहुत फलदायी माना जाता है।