सोमवार (31 जुलाई) को जदयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव और एनडीए में शामिल नेता जीतन राम मांझी ने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी है। जहाँ शरद यादव में बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने के नीतीश कुमार के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा है कि वो इससे समहत नहीं थे। वहीं मांझी ने रामविलास पासवान को केंद्र में और उनके भाई को राज्य में मंत्री बनाए जाने के उदाहरण देकर अपने बेटे संतोष सुमन को नीतीश कैबिनेट में जगह देने की मांग की है। शरद यादव ने कहा, “मैं बिहार में इस फैसले से सहमत नहीं, ये दुर्भाग्यपूर्ण है। जनता ने इसके लिए वोट नहीं दिया था।”
नीतीश कुमार ने 26 जुलाई को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हुए लालू यादव की राजद और कांग्रेस से अपना “महागठबंधन” तोड़ लिया था। अगले ही दिन नीतीश ने एनडीए के समर्थन से सरकार बना ली और मुख्यमंत्री पद की छठवीं बार शपथ ली। बीजेपी नेता सुशील मोदी को राज्य का डिप्टी सीएम बनाया गया। महागठबंधन के टूटने के बाद से ही कयास लगाया जा रहा था कि शरद यादव नीतीश के फैसले से खुश नहीं हैं।
दूसरी तरफ एनडीए के घटक दल एचएएम (एस) के नेता जीतन राम मांझी नाराज बताए जा रहे थे। खबरों के अनुसार मांझी चाहते हैं कि उनके बेटे संतोष सुमन को बिहार में मंत्री बनाया जाए। नीतीश कुमार ने शनिवार (29 जुलाई) को 27 सदस्यीय मंत्रिमंडल का कैबिनेट का गठन किया नीतीश कैबिनेट में जदयू के 14, बीजेपी के 12 और लोजपा के एक नेता को मंत्री बनाया गया। लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान के भाई पशुपति पासवान न तो एमएलए हैं और न ही एमएलसी फिर भी उन्हें मंत्री बनाया गया। अब पशुपति पासवान को छह महीने के अंदर किसी एक सदन का सदस्य बनना होगा।
एनडीए के घटक दल आरएलएसपी के प्रमुख और नरेंद्र मोदी कैबिनेट में मंत्री उपेंद्र कुशवाहा भी बिहार सरकार में जगह नहीं दिए जाने से नाराज बताए जा रहे हैं। बिहार में साल 2015 में हुए विधान सभा चुनाव में कुशवाहा, पासवान और मांझी की पार्टियों ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। कुशवाहा और पासवान की पार्टी को दो-दो सीटों और मांझी की पार्टी को एक सीट पर जीत मिली थी। बिहार में एनडीए के पास कुल 58 विधायक हैं। 243 सदस्यों वाली विधान सभा में जदयू के पास 71 विधायक हैं। नीतीश कुमार को विश्वासमत प्रस्ताव के दौरान 131 विधायकों का समर्थन मिला था। दो निर्दलीय विधायकों ने भी नीतीश सरकार का समर्थन किया था। नीतीश सरकार के विश्वास मत के खिलाफ 108 वोट पड़े थे। राजद के पास 80 विधायक हैं और कांग्रेस के पास 27। यानी राजद-कांग्रेस को एक निर्दलीय विधायक का समर्थन मिला था।