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बिहार दिवस पर नॉन बिहारी लड़की के ख़त पढ़, गर्व से सीना हो जायेगा चौड़ा

दोस्तों आज बिहार में चारों तरफ बिहार दिवस को लेकर चर्चा हो रही है.सभी न्यूज चैनल्स, अखबारों, यहां तक की सोशल मीडिया पर भी बिहार दिवस को लेकर कुछ ना कुछ लिखा जा रहा है. सभी बिहारवासी अपने-अपने तरीके से अपने बिहारी होने पर गौरवान्वित महसूस होने का संदेश दे रहे हैं. और हो भी क्यों नहीं, जिस धरती पर अनाज से ज्यादा आईएस-आईपीएस उपजते हों. देश के आईआईटी काॅलेज बिहार के युवाओं से भरे पड़े हों. महान गणितज्ञ आर्यभटट् से लेकर से अर्थशास्त्री चाणक्य जैसे अनमोल रत्न, दुनिया को बुद्ध की इस पावन धरती से मिले हो.

ये तो रहे बिहारवासियों के गौरवान्वित होने के पीछे छिपे कुछ कारण। लेकिन क्या? एक नाॅन-बिहारी भी ऐसा ही सोचता है? आपका जवाब होगा नहीं, बिलकुल भी नहीं. आखिर बाहरी दुनिया के लोग बिहारियों के लिए अच्छा क्यों सोचने लगें? लेकिन आप यहां गलत हैं. शायद आप मैट्रो सिटी की हाई-फाई बोली और स्टाइल के चलते खुद को कम आंकते आ रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि ये मैट्रो सिटीज वाले हमेशा आपके टैलेंट से डरते आए हैं और इस डर को छिपाने के लिए ही वो बिहार वासियों को अपनी बोली-अपने स्टाइल से कमतर दिखाते हैं ताकि वो अपनी इस हीन भावना को छिपा सकें. और हां, ये अंदर की बात हैं। अब आप पूछेंगे कि इतना सब मुझे कैसे पता? पता तो होगा दोस्त क्योंकि मैं भी एक नाॅन-बिहारी हूं.

मेरी एक नाॅन-बिहारी से बिहारी बनने का सफर आज से पांच साल पहले शुरू हुआ.मैं मैट्रो सीटी की पढ़ी-लिखी, वहीं नौकरी करने वाली लड़की. अपनी इच्छाओं के पंख लगाकर दिल्ली के सड़को पर मस्ती करती हुई लड़की, जिसका दूर-दूर तक बिहार से कोई नाता नहीं रहा. लेकिन किस्मत के तार कुछ ऐसे जुड़े कि मुझे बिहार की धरती पर आकर अपना बसेरा बसाना पड़ा. शुरुआती दिनों की बात करुं तो मेरा मन इस जगह को अपनाने के लिए तैयार ही नहीं होता था. दिल करता था कि कब मौका मिले कि मैं बिहार को हमेशा के लिए अलविदा बोल डालूं। और लौट जांउ दिल्ली की बिफिक्री से भरी जिंदगी में. लेकिन समय ने मेरे लिए कुछ अलग ही सोच रखा था. क्या सोच रखा था इस बारे में आपको बाद में बताउंगी.
अभी लौटते हैं बिहार हेटर से शुरू हुए उस सफर की, जहां मैं धीरे-धीरे बिहार लवर बन गई। यह बात लिखने तक ही सीमित नहीं है, हकीकत में मैं बिहार की संस्कृति को नमन करती हूं। बिहार की मिटटी में प्यार और अपनेपन की वो खुशबू बसी हुई है जो रिश्तों को हमेशा महकाती रहती है. रिश्तों में इतना जुड़ाव शायद ही मुझे कभी बिहार से बाहर देखने को मिला हो. आज भी यहां संयुक्त परिवार बसते हैं, छोटे अपने बड़ो को देखकर कुर्सी से खड़े हो जाते हैं और बड़े अपने छोटो को बाबू-बाबू बोलकर प्यार लुटाते हैं. मैट्रो सिटीज में तो हम अपने माता-पिता को भी इतना समय नहीं दे पाते हैं यहां जितना समय लोग अपने अन्य रिश्तो को निभाने में लगाते हैं.

यहां की औरते सबुह-शाम मंदिर में आरती भी गाती हैं और स्मार्टफोन से व्हाटस्अप और फेसबुक पर सेल्फी खींचकर प्रोफाइल पिक भी लगाती हैं. भजन-कीतर्न के साथ-साथ बाॅलीवुड गानों पर ठुमके भी लगाती हैं.यहां होली और छठ पर्व पर परिवार के सभी सदस्यों का जो जुटान होता है शायद ही बिहार से बाहर किसी जगह पर लोग इस तरह जुटते हों। इन दो पर्व पर जिस तरह से बिहार से बाहर बसे बिहारी अपनी जान को दांव पर लगाकर अपने घर की देहरी पर पहुंचते हैं वो जज़्बा वाकई काबिले तारीफ है.यह जज्बा हम तो नहीं ला सकते हैं क्योंकि ये तो केवल बिहारियों में ही इनबिल्ट होता है.

यहां की बोली में जो मिठास है शायद ही इतनी मीठी बोली मैंने किसी अन्य जगह पर सुनी हो. यहां की डाट में भी एक तहजीब और तमीज का अंश छिपा हुआ रहता है जोकि किसी और भाषा में आप महसूस ना कर सकेंगे. कम में गुजारा कर बड़े-बड़े सपनो को पालना-पोसना, पढ़ाई और नौकरी के लिए बच्चों व युवाओं की ऐसी लगन केवल बिहार में देखने को मिली. अब भला इतनी खूबियों को कोई कैसे झुठला सकता है. इसलिए मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि ’बिहार में बहार’ है. इसी के साथ मेरी और मेरी पूरी टीम की तरफ से सभी बिहारवासियों को ‘बिहार दिवस” की हार्दिक शुभकामनायें.

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