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आखिर क्यों सोनिया गांधी ने अरविंद केजरीवाल को लंच पर बुलाया ही नहीं

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भाजपा विरोधी दलों के नेताओं और मुख्यमंत्रियों को शुक्रवार (26 मई) को दिल्ली में लंच पर आमंत्रित किया है लेकिन इस “महाभोज” में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को नहीं बुलाया गया है। दूसरी तरफ बिहार में कांग्रेस के सहयोगी और राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद को बिजी बताकर लंच का न्योता “ठुकरा” दिया है। सोनिया गांधी जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार के खिलाफ विपक्षी दलों की तरफ से साझा उम्मीदवार उतारना चाहती हैं। ये लंच इसलिए भी खास हो गया है क्योंकि 26 मई को ही नरेंद्र मोदी सरकार अपना तीन साल पूरा कर रही है। पीएम नरेंद्र मोदी सरकार अपनी सरकार के तीन साल पूरे होने पर असम में देश के सबसे लंबे पुल का उद्घाटन करने के बाद एक जनसभा को संबोधित करेंगे।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का कार्यकाल जुलाई में पूरा हो रहा है। माना जा रहा है कि विपक्ष की तरफ से साझा उम्मीदवार उतारकर सोनिया गांधी 2019 के लोक सभा चुनाव में सभी भाजपा विरोधी दलों को एक झंडे तले आने की तैयारी करना चाहती हैं। लेकिन इस लंच में पीएम मोदी के खिलाफ सबसे मुखर सीएम अरविंद केजरीवाल को न बुलाया जाना, और भाजपा के संग दोबारा हाथ मिलाने की अफवाहों से घिरे सीएम नीतीश कुमार का न आना राजनीतिक गलियारों में कानाफूसी की वजह बना हुआ है।

राष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए के पास विपक्ष से लगभग 15 फीसदी ज्यादा वोट शेयर हैं। एनडीए के पास 48.64 प्रतिशत वोट शेयर हैं तो वहीं कांग्रेसनीत यूपीए के पास 35.47 फीसदी वोट शेयर हैं। दोनों गठबंधनों में नहीं शामिल विपक्षी दलों के पास करीब 13 प्रतिशत वोट हैं। ऐसे में एनडीए के खिलाफ यूपीए के लिए किसी भी पार्टी के समर्थन की बड़ी जरूरत होगी। फिर भी आम आदमी पार्टी के मुखिया को लंच का न्योता न देने के पीछे क्या वजह हो सकती है? माना जा रहा है कि सोनिया गांधी न केवल राष्ट्रपति चुनाव बल्कि आगामी आम चुनाव के लिए भी एडीए विरोधी गठबंधन की संभावनाएं टटोल रही हैं। इस भावी गठबंधन में शायद वो आम आदमी पार्टी को नहीं शामिल करना चाहतीं क्योंकि आम आदमी पार्टी उन्हीं राज्यों में अपनी पैठ बना रही है जहां पर भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस से है।

चाहे दिल्ली हो या पंजाब, गोवा, राजस्थान या गुजरात इन राज्यों में आम आदमी पार्टी राजनीतिक जगह बनाने में जुटी हुई है। इन सभी राज्यों में कांग्रेस ही भाजपा के खिलाफ मुख्य विपक्षी पार्टी रही है। ऐसे में कांग्रेस आम आदमी पार्टी का साझीदार बनाकर अपने बराबर का दर्जा नहीं देना चाहेगी। साथ ही कांग्रेस ये भी चाहेगी कि आगामी आम चुनाव में भाजपा के खिलाफ वोटों की जो भी लामबंदी हो उसका पूरा लाभ कांग्रेस को मिले।  जिस तरह से पंजाब विधान सभा चुनाव और दिल्ली नगरपालिका चुनाव में कांग्रेसी की वापसी हुई है उससे भी पार्टी भविष्य को लेकर उत्साहित होगी।

वहीं नीतीश कुमार के सोनिया के लंच में न आने की वजह ज्यादा छिपी नहीं है। नीतीश ने जदयू की तरफ से शरद यादव को लंच में भेजने की बात कही है। पिछले कुछ समय बार-बार ऐसी अफवाह उड़ रही है कि नीतीश कुमार कभी भी लालू यादव की राजद और कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा से हाथ मिला सकते हैं। हाल ही में जब लालू यादव के करीबी माने जाने वालों की परिसंपत्तियों पर आयकर विभाग ने छापा मारा तो बिफरे लालू ने ट्वीट कर दिया कि नीतीश को नए साझीदार मुबारक। हालांकि बाद में लालू ने अपने बयान की लीपापोती करते हुए कह दिया कि उनके और नीतीश के बीच कोई मतभेद नहीं है। वहीं नीतीश ने राष्ट्रपति चुनाव पर दो टुक राय रखते हुए कहा है कि पहले सत्ताधारी दल से बात करके सर्वसम्मित का उम्मीदवार चुनने की कोशिश की जाए, जब बात न बने तो विपक्षी दल साझा उम्मीदवार चुन लें।

जाहिर है कि नीतीश ने इस मसले पर सॉफ्ट कार्ड खेला है। वो पूरी तरह भाजपा के खिलाफ भी नहीं जाना चाहते और खुलकर साथ भी नहीं आना चाहते। शायद यही वजह होगी कि उन्होंने सोनिया के लंच में खुद न आकर अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेता शरद यादव को भेजा। राष्ट्रपति चुनाव में सबसे अधिक सक्रियता अगर किसी मुख्यमंत्री ने दिखायी है तो वो हैं पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी। ममता पहले भी सोनिया और राहुल गांधी से मुलाकात कर चुकी हैं। ममता ने गुरुवार (25 मई) को पीएम नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की। पीएम मोदी से मुलाकात के बाद सीएम ममता ने कहा कि उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव पर कोई चर्चा नहीं की लेकिन साथ ही उन्होंने ये भी जोड़ा कि अगर भाजपा पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम जैसा कोई उम्मीदवार उतारती है तो वो उसे समर्थन दे सकती हैं। ममता चाहती हैं कि राष्ट्रपति पद के सभी दल सर्वसम्मति से एक उम्मीदवार पर मुहर लगाएं। ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव आने-आने तक राजनीति समीकरण पूरी तरह बदले नजर आएं तो हैरत नहीं होनी चाहिए। आखिर राजनेता कब के अपनी बातों के पक्के ठहरे।

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