दिल्ली सरकार के मंत्री रहे कपिल मिश्र के बाद अब आम आदमी पार्टी (आप) के कद्दावर नेता माने जाने वाले कुमार विश्वास पर पार्टी की गाज गिरना तय सा हो गया है। विपरीत हालात में भी दिल्ली के अल्पसंख्यकों ने ‘आप’ का साथ देकर उसे कांग्रेस के मुकाबले में तीसरे स्थान पर आने से रोका। इसका असर बाद की राजनीति में होता दिख रहा है। अपनी पार्टी के विधायकों की हर रोजा इफ्तारी में पार्टी प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शामिल होकर अल्पसंख्यकों का साथ खुलेआम देने का भरोसा दे रहे हैं। बनारस जाकर सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़कर केजरीवाल ने कांग्रेस से जो बढ़त ली थी, उसे वे अब भी बनाए हुए हैं। लेकिन केजरीवाल अपने पांच साल के राजनीतिक जीवन में दूसरी बार बड़े पैमाने पर बगावत झेल रहे हैं। और इस बार कई चुनाव हारने के बाद उनका आत्मविश्वास डगमगा गया है।
इसलिए वे अपने स्वभाव के उलट चुप्पी लगाकर वक्त बदलने का इंतजार कर रहे हैं। अब तो यह साबित होने लगा है कि भाजपा के प्रति नरम रुख रखने वाले नेताओं के लिए ‘आप’ में जगह नहीं होगी। अन्यथा केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया जैसी हैसियत रखने वाले कुमार विश्वास के खिलाफ अभियान चलाने वाले को पार्टी में महत्त्व मिलता। ओखला के विधायक अमानतुल्ला के बाद दिलीप पांडे के समर्थन में पार्टी दफ्तर पर पोस्टर लगता है और इनके खिलाफ कोई बड़ा नेता नहीं बोलता। यह उस पार्टी में हो रहा है जिसमें सामान्य बातों का विरोध करने पर बड़े-बड़े नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। अमानतुल्ला ने कुमार विश्वास पर भाजपा से मिलकर पार्टी तोड़ने का आरोप लगाया था। पार्टी को बचाने के लिए फौरी तौर पर उन्होंने अमानतुल्ला को निलंबित करके कुमार विश्वास को राजस्थान का प्रभारी बना दिया है। लेकिन अमानतुल्ला को उसके बाद लगातार महत्त्व देकर केजरीवाल ने अल्पसंख्यकों में यह संदेश दिया कि पार्टी उनके साथ है। दिल्ली की सफलता ने केजरीवाल को निरंकुश सा बना दिया। जिसने भी उनकी हां में हां नहीं मिलाई वह बाहर होता चला गया। पार्टी को वैचारिक रूप से मजबूत बनाने और अखिल भारतीय स्वरूप देने के प्रयास में लगे नेताओं योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और आनंद कुमार को केजरीवाल ने एक ही झटके में पार्टी से बाहर कर दिया। वह इस पार्टी के लिए एक बड़ा झटका था।
उनके पुराने साथी कुमार विश्वास पिछले काफी दिनों से पार्टी में अलग-थलग हो गए थे। कुमार विश्वास को पंजाब क्या, दिल्ली निगम चुनाव में भी कहीं नहीं बुलाया गया। पंजाब चुनाव के बाद वे इशारों में बोले लेकिन निगम चुनाव के बाद खुलकर बोलने लगे हैं। कुमार विश्वास ने वे सारी बातें कह दीं जो आम जन के चर्चा में थी। दिल्ली के उप राज्यपाल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ दिन भर आरोप लगाने के बाद चुनाव आयोग जैसी सांवैधानिक स् ांस्था पर आरोप लगाने से वे आहत थे। उनकी लाइन पार्टी से एकदम अलग हो गई है। पार्टी के विधायकों को पता है कि वोट तो केजरीवाल के नाम से मिलने हैं, इसलिए अपवाद के अलावा बड़े पैमाने पर विधायक विश्वास के पक्ष में गोलबंद होते नहीं दिख रहे हैं। इस बात को लेकर हवा तो उड़ ही रही है कि कुमार विश्वास का भाजपा के प्रति नरम रुख है। अब तो कुमार विश्वास के खिलाफ पोस्टर लगने से यह पुख्ता हो रहा है कि आम आदमी पार्टी के वजूद को बचाने के लिए केजरीवाल और उनके लोग अपने को भाजपा का नंबर एक दुश्मन बताएं। भले ही दिल्ली में तुरंत चुनाव न दिख रहे हों लेकिन आने वाले दिनों में ‘आप’ के नियमों के बिना संसदीय सचिव बनाए गए 21 विधायकों की सदस्यता पर फैसला आने वाला है। कई विधायक पहले से ही बागी बने हुए हैं। अगले साल इन विधायकों के बूते तीन राज्यसभा के सदस्यों के चुनाव होने वाले हैं। जिस पर ‘आप’ की तो नजरें हंै ही साथ ही भाजपा की भी नजर मानी जा रही है।
आम आदमी पार्टी (आप) के नेता कुमार विश्वास को लेकर पार्टी नेताओं में आपसी तनातनी अब सतह पर आ गई है। पार्टी में विश्वास की विश्वसनीयता पर उठते सवालों के बीच उन्हें ‘भाजपा का मित्र’ बताए जाने वाले पोस्टर शनिवार को ‘आप’ मुख्यालय के बाहर लगाए जाने के बाद पार्टी में टकराव का संकट गहरा गया है। अब तक सोशल मीडिया पर अपनी ही पार्टी के नेताओं के हमले झेल रहे विश्वास ने उनके खिलाफ शुरू हुए ‘पोस्टर युद्ध’ को पार्टी में पनप रही दरबारी संस्कृति का परिणाम बताया। कार्यालय के बाहर शनिवार को चस्पा किए गए पोस्टर में विश्वास को भाजपा का मित्र और गद्दार तक कहा गया है। पार्टी के किसान सम्मेलन में शिरकत करने पहुंचे विश्वास ने कार्यकर्ताओं से पार्टी के मूल सिद्धांतों से जुड़े रहने का आह्वान करते हुए कहा कि हम ‘आप’ में इस तरह की साजिशों और पार्टी में पांच-छह लोगों की ओर से फैलाई जा रही ‘दरबारी संस्कृति’ में खुद को फंसाने के लिए नहीं आए हैं।
हम एक मकसद को लेकर इस पार्टी में आए हैं जिसे पूरा करने के लिए रामलीला मैंदान में इस पार्टी का जन्म हुआ था।पार्टी नेता दिलीप पांडे ने पोस्टर चस्पा करने को पार्टी में दरार पैदा करने की साजिश बताते हुए इस मामले में उनका नाम घसीटे जाने का आरोप करते हुए पुलिस में भी शिकायत दर्ज कराई है। पांडे ने ट्वीट किया कि किसी षड्यंत्रकारी ने मेरे नाम का दुरुपयोग करके पार्टी में मतभेद पैदा करने की घटिया कोशिश की। पार्टी ने मामले की पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।