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दिल्ली में आप सरकार में खराब हुए प्राइवेट स्कूलों के नतीजे

मल्लिका जोशी

फरवरी 2015 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद आए सीबीएसई बोर्ड के 12वीं के नतीजों में सरकारी स्कूल प्राइवेट स्कूलों से आगे निकल गए थे। 2015 में सीबीएसई बोर्ड के दिल्ली स्थित सरकारी स्कूलों का उत्तीर्ण होने का प्रतिशत 88.22 रहा। वहीं प्राइवेट स्कूल का पास प्रतिशत 85.48 था। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था कि 12वीं के पास प्रतिशत के मामले में सरकारी स्कूल प्राइवेट स्कूल से आगे निकले हों। साल 2009 और साल 2010 में भी सरकारी स्कूल इस मामले में आगे रहे थे। हैरानी की बात थी दिल्ली के प्राइवेट स्कूलों के पास प्रतिशत में आई गिरावट।

साल 2014 में दिल्ली के सीबीएसई के 12वीं के प्राइवेट स्कूलों का पास प्रतिशत 92.09 प्रतिशत था। यानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद प्राइवेट स्कूलों के पास प्रतिशत में छह प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई। साल 2013 में प्राइवेट स्कूलों में 12वीं का पास प्रतिशत 91.83 रहा था। सीबीएसई बोर्ड के सरकारी स्कूलों में साल 2013 में पास प्रतिशत 88.62 और साल 2014 में 88.78 रहा था।

प्राइवेट स्कूलों में 12वीं के पास प्रतिशत में गिरावट का सिलसिला 2015 के बाद भी नहीं रुका। साल 2016 में भी प्राइवेट स्कूल अपने 2013 या 2014 के प्रदर्शन की बराबरी नहीं कर सके।  साल 2017 में भी प्राइवेट स्कूलों का यही हाल रहा और वो 2013 या 2014 के नतीजों के करीब नहीं पहुंच सके। । वहीं साल 2016 में सीबीएसई के सरकारी स्कूलों का 12वीं का पास प्रतिशत 88.98 रहा तो प्राइवेट स्कूलों का 86.67 रहा। साल 2017 में सीबीएसई के सरकारी स्कूलों का 12वीं का पास प्रतिशत 88.36 रहा तो प्राइवेट स्कूलों का 84.20 रहा।

अरविंद केजरीवाल के नेतृत्ववाली आम आदमी पार्टी सरकार ने अपने दो साल से अधिक के कार्यकाल में सरकारी स्कूलों की हालत बेहतर बनाने के लिए कई कदम उठाए। केजरीवाल सरकार ने शिक्षा मद में बजट काफी बढ़ाया। केजरीवाल सरकार ने सरकारी स्कूलों में समर कैंप जैसे कई अभिनव प्रयोग किए जिससे इन स्कूलों में शिक्षा की स्थिति बेहतर हो। लेकिन सरकारी स्कूलों का पास प्रतिशत आम आदमी पार्टी की सरकार बनने से पहले के सालों के लगभग बराबर ही रहा जबकि प्राइवेट स्कूलों का आंकड़ा गिर गया।

ऐसा नहीं है कि देश के दूसरे महानगरों में भी इन सालों में सीबीएसई से जुड़े प्राइवेट स्कूलों के पास प्रतिशत में गिरावट आई हो।दिल्ली को छोड़ दिया जाए तो अन्य महानगरों के पास प्रतिशत में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं दिखा है। प्राइवेट स्कूलों के कुछ प्रिंसिपल की मानें तो प्राइवेट सीबीएसई स्कूलों और उनमें पढ़ने वाले छात्रों की संख्या बढ़ने की वजह से पास प्रतिशत में ये गिरावट आई है।

साल 2015 में दिल्ली के सरकारी स्कूलों में 12वीं की परीक्षा देने वाले छात्रों की संख्या साल 2014 की तुलना में कम थी जबकि प्राइवेट स्कूलों में ये संख्या बढ़ी थी। इसी तरह साल 2014 की तुलना में दिल्ली में चलने वाले सरकारी सीबीएसई स्कूल की संख्या 2015 में मामूली बढ़ी। लेकिन इस दौरान प्राइवेट सीबीएसई स्कूलों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई। साल 2013 में दिल्ली में 1546, साल 2014 में 1618 और साल 2015 में 1714 प्राइवेट सीबीएसई स्कूल थे।

रोहिणी स्थित माउंट आबु पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल ज्योति अरोड़ा कहती हैं, “पिछले कुछ सालों में दिल्ली में खुले स्कूल बाहरी इलाकों में खुले हैं। इन इलाकों के स्कूलों की मामूली निगरानी होती है और उनकी गुणवत्ता पर भी अपेक्षा के अनुरूप नहीं होती।  अगर पुराने प्राइवेट स्कूलों के नतीजे देखें तो आज भी परीक्षा परिणाम पहले की तरह ही बढ़िया हैं। कई स्कूलों ने अपनी कई शाखाएं भी खोल ली हैं लेकिन वो उनमें गुणवत्ता की निगरानी नहीं रख पाते।” कई अन्य प्रिंसिपल भी अरोड़ा की बात से सहमत हैं। पूर्वी दिल्ली के एक प्राइवेट स्कूल की प्रिंसिपल ने कहा, “हर नुक्कड़ पर अफिलिएटेड प्राइवेट स्कूल खुल गए हैं। इन स्कूलों के नतीजों से सभी प्राइवेट स्कूलों के नतीजों पर असर पड़ता है।”

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