उच्चतम न्यायालय ने एक महिला को 26 सप्ताह के भ्रूण का गर्भपात कराने की आज अनुमति प्रदान कर दी क्योंकि उसके गर्भ में पल रहा भ्रूण दिल की गंभीर बीमारियों से ग्रसित है। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि कोलकाता में एसएसकेएम अस्पताल में इस गर्भ के समापन की प्रक्रिया ‘तुरंत’ की जानी चाहिए। पीठ ने मेडिकल बोर्ड और एसएसकेएम अस्पताल की रिपोर्ट के अवलोकन के बाद यह निर्देश दिया जिसमे गर्भपात की सलाह देते हुये कहा गया था कि गर्भावस्था जारी रखने से मां को ‘गंभीर मानसिक आघात’ पहुंच सकता है और बच्चे ने, यदि जीवित जन्म लिया, तो उसे दिल की बीमारियों के लिये अनेक सर्जरी प्रक्रियाओं से गुजरना होगा।
पीठ ने कहा, ‘‘मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के मद्देनजर हम यह अनुरोध स्वीकार करते हैं और महिला के गर्भ का चिकित्सीय प्रक्रिया से समापन करने का निर्देश देते हैं।’’ इस महिला और उसके पति ने गर्भ में पल रहे भ्रूण की अनेक विसंगतियों का जिक्र करते हुये गर्भपात की अनुमति के लिये शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
इस दंपति ने इसके साथ ही गर्भ का चिकित्सीय समापन कानून, की धारा 3 :2 (बी) की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती दी है जिसमें 20 सप्ताह के बाद भ्रूण का गर्भपात करने पर प्रतिबंध है।
शीर्ष अदालत ने इससे पहले उसके निर्देश पर पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा गठित सात सदस्यीय मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट रिकार्ड में ली और महिला से कहा कि वह अपने स्वास्थ्य के बारे में इसका अवलोकन कर अपने दृष्टिकोण से उसे अवगत कराये। न्यायालय ने 23 जून को एसएसकेएम अस्पताल के सात चिकित्सकों का मेडिकल बोर्ड गठित करके महिला और उसके 24 सप्ताह के गर्भ के स्वास्थ के विभिन्न पहलुओं का पता लगाकर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था। इस दंपति ने अपनी याचिका के साथ एक मेडिकल रिपोर्ट भी संलग्न की थी जिसमे यह सुझाव दिया गया था कि भ्रूण में गंभीर विसंगतियां हैं और यदि इसे जन्म लेने की अनुमति दी गयी तो यह बच्चे और मां दोनों के लिये ही घातक हो सकता है। इसके बाद ही न्यायालय ने 21 जून को केन्द्र और पश्चिम बंगाल सरकार से उसकी याचिका पर जवाब मांगा था।