पंजाब सरकार और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सलाह के बावजूद सूबे के किसान खेतों में गेहूं के ठूंठ जला रहे हैं, जिससे हवा में राख घुल रही है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के साथ ही यह फेफड़ों और आंखों की गंभीर बीमारियों का कारण बन रही है। कृषि विभाग का कहना है कि इससे मिट्टी की उर्वरता भी कम हो रही है, जिसका असर पैदावार पर होता है।
जालंधर सहित प्रदेश के अधिकतर हिस्सों में आजकल हर तरफ हवा में राख घुली है, जिससे हर जगह इस राख की एक मोटी परत जम जाती है। घरों की छतों पर, वाहन, पेड़ों के पत्तों और घर आंगन में राख की एक मोटी परत जम रही है। घरों में सूखते कपड़े, बर्तन, फर्नीचर और यहां तक कि खुली हवा में निकलने वालों के बालों और शरीर पर भी राख नजर आती है।
पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि गेहूं की कटाई के बाद खेतों में बचे ठूंठ में आग लगाने से ऐसा हो रहा है। इन खेतों से सटे ग्रामीण इलाकों पर इस राख का असर सबसे ज्यादा हो रहा है। धुएं के कारण पूरे आलम में धुएं और धूल का गुबार दिखाई देता है और इसकी वजह से सड़क हादसों का अंदेशा बढ़ गया है।
जालंधर के मुख्य कृषि अधिकारी डा जुगराज सिंह ने कहा, ‘‘खेतों में गेहूं के ठूंठ जलाने से हवा में राख फैल रही है । इसका सीधा असर मिट्टी पर तो हो ही रहा है साथ साथ यह लोगों के सेहत को भी प्रभावित कर रहा है।’’
सिंह ने बताया, ‘‘गेहूं का सूखा ठूंठ तेजी से आग पकड़ता है और तेज आग से ठूंठ के आसपास की मिट्टी पक जाती है और इसकी प्राकृतिक नमी समाप्त हो जाती है। आग से फसल के लिए उपयोगी माने जाने वाले कीड़े मर जाते हैं और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने वाले तत्व भी नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि पर्यावरण को नुकसान होने के साथ ही इससे मिट्टी की उर्वरता समाप्त होती जा रही है ।’’
इस संबंध में जुगराज कहते हैं, ‘‘प्राकृतिक तरीके से ठूंठ का निपटारा करने के लिए खेतों में हल चला कर इसे उलट दिया जाए तो यह मिट्टी की प्राकृतिक नमी को बरकरार रखने के साथ ही खाद का काम करेगा और फसल में खाद डालने की आवश्यकता 30 फीसदी तक कम हो सकती है । इसके अलावा इस प्रक्रिया से खेतों में पानी का ठहराव भी बढे़गा’’
कृषि अधिकारी ने बताया, ‘‘विभाग ने जालंधर और आस पास के जिलों में इसके लिए जागरूकता अभियान भी चलाया है और किसानों को ठूंठ को प्राकृतिक तरीके से निपटाने के फायदे समझाए गए हैं ।’’
इस बीच पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने विज्ञापन के माध्यम से किसानो से खेतों में गेहूं के ठूंठ को आग नहीं लगाने की अपील की है और इससे पर्यावरण, जमीन की उपजाउच्च क्षमता और इनसानों की सेहत पर पड़ने वाले विपरीत प्रभावों की जानकारी दी गई है। जिला क्षयरोग विशेषज्ञ डा. रघु सभ्भरवाल का कहना है कि ठूंठ जलाने से तापमान बढ़ जाता है और राख तथा ठूंठ का अधजला महीन टुकड़ा हवा में फैलता है।
उन्होंने कहा, ‘‘इस धुएं में मौजूद कार्बन मोनोआक्साइड तथा नाइट्रोजन आक्साइड इस हवा में सांस लेने वाले लोगों के शरीर में जाकर फेफड़ो और आंखों का गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। इस धुएं के कारण श्वसन प्रणाली प्रभावित होती है और बुजुर्गों और बच्चों को सबसे ज्यादा परेशानी होती है।’’
गौरतलब है कि गेहूं की कटाई के बाद खेतों में ठूंठ जलाने से उठने वाले धुएं के कारण सड़कों पर दृश्यता कम हो जाती है और प्रदेश के विभिन्न इलाकों में सडक हादसों का अंदेशा बढ़ जाता है। राज्य सरकार ने इसके लिए सभी जिलों में जुर्माने का प्रावधान किया है और कुछ किसानों पर इसके लिए जुर्माना लगाया भी गया है, लेकिन बहुत से इलाकों में किसान अब भी ठूंठ जलाने की इस प्रवृत्ति को अपनाए हुए हैं।