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बसपा से निकलकर अब शिवपाल यादव के खेमे के करीब नसीमुद्दीन!

लखनऊ। बसपा से निष्कासित पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के अगले सियासी कदम पर सबकी निगाहें लगी है कि वह साइकिल की सवारी करेंगे अथवा हाथ का साथ लेंगे। उनके लिए विकल्प अधिक नहीं होने के कारण ही समर्थकों में बेचैनी बढ़ी है। सिद्दीकी गुरुवार को खुद पर लगाए आरोपों की सफाई देंगे और मायावती एंड कंपनी के भ्रष्ट कारनामों की कलई खोलने का एलान कर चुके हैं। माना जा रहा है कि सिद्दीकी अभी कोई बड़ा सियासी फैसला नहीं लेंगे वरन उचित अवसर का इंतजार करेंगे। अलग पार्टी बनाने के प्रयोगों की असफलताएं  देख कर सिद्दीकी ऐसा जोखिम लेने से कतराएंगे। समर्थकों का एक खेमा सपा से नजदीकी बढ़ाने की कोशिश में जुटा है परंतु उनके लिए साइकिल की सवारी आसान न होगी। सपा में आजम खां के रहते वहां सिद्दीकी की दाल गलनी भी आसान नहीं होगी। ऐसे में टकराव की स्थिति सिद्दीकी के लिए सपा में आए दिन मुश्किलें होगी।

सिद्दीकी के लिए एक विकल्प कांग्रेस भी है। बुंदेलखंड में कांग्रेस की बेहतर स्थिति भले ही हो परंतु मौजूदा हालात संघर्ष के है। कांगे्रस में दमदार मुस्लिम नेता की गुंजाइश जरूर है परंतु सिद्दीकी के अधिकांश समर्थक अधिक इंतजार के मूड में नहीं हैं। सूत्रों का मानना है कि ऐसी स्थिति में सिद्दीकी के लिए शिवपाल यादव से नजदीकी बढ़ाना और सेक्यूलर मोर्चे में शामिल होना विचारणीय विकल्प है। समर्थकों का मानना है कि किसी दल विशेष का साथ देने के बजाए बसपा से अलग हुए नेताओं को एकमंच पर लाने की दिशा में प्रयास हो। ऐसा करने से ही सियासी भटकाव की स्थिति से बचा जा सकता है।

नसीमुद्दीन सिद्दीकी बहन जी की भी नही सुन रहे थे

सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा कि तमाम शिकायतों पर मायावती द्वारा बार-बार बुलाए जाने पर भी नसीमुद्दीन सिद्दीकी अपना पक्ष रखने नहीं आए. यही नहीं वह पार्टी विरोधी गतिविधियों में भी लिप्त पाए गए। अब सुनने में आया है कि नसीमुद्दीन शिवपाल के साथ जाने के लिये आतुर हैं।

नसीमुददीन दयाशंकर मामले में पहले भी फंसे

नसीमुददीन भाजपा नेता दयाशंकर व यूपी सरकार में मंत्री स्‍वाति सिंह की बेटी को अपशब्‍द कहे जाने के मामले बुरी तरह पहले से ही फंसे हैं। बसपा सरकार में खनन के खेल में नसीमुद्दीन की जांच की जाये तो यह गायत्री प्रजापति से कई कदम आगे निकलेंगे। और हां एक बात और यह वही नसीमुद्दीन हैं जिन्‍होंने दो बार मायावती को नोटों का हार पहनाया और मंच से ऐलान किया था कि मैं हर बार बहनजी को नोटों का हार पहनाऊंगा। नोटबंदी के बाद नसीमुद्दीन का यह दांव भी जाता रहा। बाबूसिंह कुशवाहा को निपटाने वाले नसीमुद्दीन आज खुद ही निपट गये।

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