उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात जिले के झिनझक नगरपालिका में रहने वाले 76 वर्षीय प्यारेलाल बिहार राजभवन दो बार फोन कर चुके थे। प्यारेलाल इस बात की पुष्टि करना चाहते थे कि क्या सचमुच उनके छोटे भाई रामनाथ कोविंद को बीजेपी ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है? प्यारेलाल के बेटे दीपक ने पटना फोन किया था। दोनों ही बार उनकी रामनाथ कोविंद से बात नहीं हो पाई, न ही कोई जवाब फोन आया। प्यारेलाल कहते हैं, “आज उनके लिए बड़ा दिन है। हमारे पैतृक गांव पाराउख में आज उत्सव का माहौल है।” अपने परिवार के साथ झिनझक में रहने वाले प्यारेलाल कपड़े की दुकान चलाते हैं।
रामनाथ कोविंद कानपुर देहात के खानपुर टाउन से 12वीं की पढ़ाई करके कानपुर विश्वविद्यालय से वाणिज्य और विधि (लॉ) की पढ़ाई करने चले गए थे। प्यारेलाल के अनुसार वो “मेधावी” छात्र थे। प्यारेलाल के अनुसार दिल्ली में लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा के तैयारी के दौरान उनकी मुलाकात उज्जैन के रहने वाले जन संघ के नेता हुकुम चंद से हुई थी। उससे पहले वो पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के निजी सचिव के तौर पर काम कर चुके थे।
रामनाथ कोविंद सक्रिय रूप से राजनीति में तब आए जब 1991 में बीजेपी ने उन्हें घाटमपुर लोक सभा से पार्टी का टिकट दिया। प्यारेलाल बताते हैं कि रामनाथ चुनाव हार गए। प्यारेलाल के अनुसार उसके बाद रामनाथ भोगनीपुर से विधान सभा का भी चुनाव लड़े लेकिन हार गए। प्यारेलाल कहते हैं, “वो समर्पित बीजेपी नेता हैं। हमने कभी नहीं सोचा था कि वो इस ऊंचाई तक पहुंचेंगे। पूरे परिवार को उन पर गर्व है।”
रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा करते हुए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि वो एक “गरीब दलित परिवार” से आते हैं। प्यारेलाल ने दावा किया कि उनके पिता मैकूलाल पाराउख गांव के चौधरी थे। प्यारेलाल के अनुसार उनके और रामनाथ के पिता मैकूलाल वैद्य भी थे और गांव में किराने और कपड़े की दुकान भी चलाते थे। प्यारेलाल कहते हैं, “हम एक सामान्य मध्यमवर्गीय जीवन जीते थे। कोई संकट नहीं था। सभी पांच भाइयों और दो बहनों को शिक्षा मिली। एक भाई मध्य प्रदेश में अकाउंट अफसर के पद से रिटायर हुए हैं। एक और भाई सरकारी स्कूल में टीचर हैं। रामनाथ वकील बन गए। बाकी अपना कारोबार करते हैं।”
प्यारेलाल घुटने के इलाज के दौरान पटना के राजभवन में एक महीने तक रहे थे। प्यारेलाल ने बताया कि परिवार में “कोविंद” उपनाम लगाने की शुरुआत रामनाथ ने ही की थी। प्यारेलाल कहते हैं कि उन्हें इसके पीछे की वजह नहीं पता लेकिन परिवार के दूसरे लोगों ने भी ये उपनाम लगाना शुरू कर दिया। रामनाथ आखिरी बार झिनझक और पाराउख में दिसंबर 2016 में आए थे।
प्यारेलाला के अनुसार दो बार राज्य सभा सांसद रहने के दौरान रामनाथ कोविंद ने झिनझक में सड़क और अपने गांव में एक मिलन केंद्र बनवाया। पाराउख गांव में ज्यादातर आबादी ठाकुरों और ब्राह्मणों की है। दलितों के केवल चार घर हैं। रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद उनके पैतृक घर पर स्थानीय बीजेपी नेताओं का तांता लग गया है। रामानाथ के भतीजे दीपक कहते हैं, “हमने राम नाथ चाचा से कई बार कहा कि हमें बेहतर नौकरी दिला दो लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उन्होंने कहा कि जैसे मैंने स्वयं सफलता पाई, वैसे तुम लोग भी मेहनत करो।” दीपक सरकारी स्कूल में टीचर हैं।