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नेताजी – शिवपाल फिर हुये किनारे ,मुलायम परिवार में झगड़ा बरक़रार

यूपी विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद भी मुलायम सिंह के परिवार में एका नहीं हो पाई है। सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक शनिवार को मुलायम व शिवपाल सिंह यादव की अनुपस्थिति में हुई। उन्हें बैठक का बुलावा भी नहीं भेजा गया।

मुलायम परिवार में रार की शुरुआत गत सितंबर में तब हुई थी जब अखिलेश यादव की जगह शिवपाल सिंह यादव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। इसके जवाब में अखिलेश यादव ने शिवपाल को मंत्रिपरिषद से बर्खास्त कर दिया। इसके बाद दोनों के समर्थकों ने एक-दूसरे के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। मुलायम के आवास पर भी प्रदर्शन हुए।

कुनबे की यह जंग 1 जनवरी 2017 को चरम पर पहुंच गई जब लखनऊ में सपा का विशेष राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाकर मुलायम सिंह को हटाकर अखिलेश यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया। इसी के साथ शिवपाल यादव को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया।

कुछ दिन पार्टी के नाम और निशान पर कब्जे को लेकर जद्दोजहद चली। पार्टी का बहुमत अखिलेश यादव के साथ खड़ा था, इसलिए बाजी उन्हीं के हाथ लगी। निर्वाचन आयोग ने उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष माना और साइकिल सिम्बल उन्हीं को मिला।

निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद पहले से दो फाड़ चल रहे मुलायम परिवार के अंतर्विरोध और ज्यादा गहरा गए। विधानसभा चुनाव में मुलायम और शिवपाल हाशिए पर रहे। जहां मुलायम ने केवल तीन सीटों पर सभाएं कीं, वहीं शिवपाल अपने निर्वाचन क्षेत्र जसवंतनगर तक सीमित रहे। परिवार के इस विवाद से पार्टी को काफी नुकसान हुआ। यादव बेल्ट में सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा।

संभावना जताई जा रही थी कि चुनाव में करारी हार के बाद मुलायम परिवार फिर एक साथ आएगा। सपा विधायक दल की बैठक में शिवपाल के पहुंचने से इसकी उम्मीद भी बढ़ी लेकिन राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद इसकी संभावना धूमिल पड़ गई।

सपा के कुछ नेता अनुमान लगा रहे थे कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कार्यकारी अध्यक्ष का पद सृजित किया जा सकता है। मुलायम सिंह को फिर से पार्टी अध्यक्ष बनाया जा सकता है और अखिलेश कार्यकारी अध्यक्ष हो सकते हैं।

कार्यकारिणी में संविधान संशोधन पर मुहर तो लगी लेकिन अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाने, नए पद सृजित करने और पुराने पद बढ़ाने पर ही। कार्यकारी अध्यक्ष पद सृजित करने का प्रस्ताव बैठक के एजेंडे में ही नहीं था।

शिवपाल को जिस तरह से पार्टी में किनारे कर दिया गया है, ऐसे में क्या उनकी सियासी राह जुदा हो जाएगी? यह सवाल सपा के हलकों में उछल रहा है।

सपा में अहमियत न मिलने, समर्थकों के टिकट कट जाने और पार्टी में भविष्य की संभावनाएं धूमिल होने पर आने वाले समय में वह नया कदम उठा सकते हैं। इसमें नई पार्टी का गठन भी शामिल है।

विधानसभा चुनाव के दौरान जसवंतनगर में उन्होंने इसका संकेत भी दिया था। कहा था कि पार्टी में सम्मान नहीं मिला तो दूसरे विकल्पों के बारे में विचार करेंगे।

जिस तरह शिवपाल व मुलायम को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से दूर रखा गया है, उससे साफ है कि सपा में अब नेतृत्व अखिलेश के हाथों में ही रहेगा। नेतृत्व के मुद्दे पर वह कोई समझौता करने को तैयार नहीं दिखते हैं।

 

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