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योगी: अयोध्या-फैजाबाद और मथुरा-वृंदावन मिलाकर बनाए जाएंगे नगर निगम

पर्यटन की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण और भगवान राम व कृष्ण से जुड़े अयोध्या और मथुरा-वृंदावन पर भाजपा सरकार मेहरबान दिखी है। मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की छठवीं बैठक में इन दोनों नगरों को नगर निगम बनाने की मंजूरी मिल गई। आने वाले निकाय चुनाव में यहां महापौर के लिए चुनाव होगा। भाजपा ने लोक कल्याण संकल्प पत्र में भी इन नगरों के विकास के लिए प्रतिबद्धता दिखाई है। वैसे पूर्व की सपा सरकार में भी अयोध्या-फैजाबाद और मथुरा को नगर निगम बनाए जाने की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने की थी।

मंगलवार को लोकभवन में कैबिनेट की बैठक के बाद सरकार के प्रवक्ता और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा तथा स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने पत्रकारों को कैबिनेट के फैसलों की जानकारी दी। शर्मा ने बताया कि अयोध्या और फैजाबाद को मिलाकर नगर निगम बनेगा। राम के प्रति आस्था की वजह से हर वर्ष देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु यहां आते हैं। इस वजह से रोजगार के अवसर भी बढ़ रहे हैं। सरकार श्रद्धालुओं को रेल, सड़क और हवाई सुविधा देने के लिए प्रयासरत हैं। नगर निगम बनने से इसमें सहूलियत होगी और बिजली, पानी समेत तमाम बुनियादी ढांचों को मजबूत करने में सहूलियत होगी। शर्मा ने बताया कि राज्य सरकार की प्राथमिकता धार्मिक नगरों का विकास करना है। मथुरा-वृंदावन को मिलाकर एक नगर निगम बनेगा। कृष्ण की इस नगरी में भी देश-विदेश के करोड़ों श्रद्धालु आते हैं। मथुरा जैसे नगर में तमाम बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। नगर निगम बनने से बिजली, पानी, सड़क, रोजगार की दिशा में बढ़ावा मिलेगा। शर्मा ने बताया कि मथुरा और वृंदावन को नगर निगम बनाने में आम जनता की सुविधा का भी ख्याल रखा जाएगा।

ठेले-खोमचे वालों के लिए नई नियमावली

कैबिनेट ने ठेले-खोमचेे वालों के हक में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। सिद्धार्थनाथ सिंह ने बताया कि केंद्र ने 2014 में इनके लिए एक अधिनियम बनाया था लेकिन, पिछली सपा सरकार ने इसमें रुचि नहीं ली। सरकार तब सिर्फ वसूली के धंधे में लगी थी और सपा सरकार के डीएनए में ही वसूली शामिल थी। योगी सरकार ने गरीबों के हित में कदम बढ़ाया है। कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश विक्रेता नियमावली 2017 को मंजूरी दी है। इसके तहत नगर पालिका और नगर निगमों में नगर पथ विक्रय समिति बनेगी। इसका कार्यकाल पांच वर्ष का होगा। हालांकि तीन वर्ष के भीतर नोटिस देकर इसे भंग करने का भी अधिकार होगा। नगर पालिका परिषदों में दस से बीस और नगर निगमों में 20 से 40 सदस्य होंगे। इसका पंजीकरण किया जाएगा। समिति में महिला, पिछड़ा, अनुसूचित जाति और सभी का प्रतिनिधित्व रहेगा।

स्टाम्प के मामलों के निपटारे के लिए बांटी जिम्मेदारी

कैबिनेट ने स्टाम्प के मामलों के निस्तारण के लिए जिम्मेदारी बांटी है। जो मामले अपील में आते हैं उनके निस्तारण के लिए धनराशि को आधार बनाया है। 25 लाख से ऊपर के मामले शासन में आएंगे जबकि दस लाख से 25 लाख और दस लाख तक के मामलों के निस्तारण के लिए अधिकारियों की अलग-अलग जिम्मेदारी तय की गई है

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