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रोज बदलते रहते हैं मुलायम के बोल वचन

लखनऊ (जेेएनएन)। अधिक समय नहीं गुजरा, जब सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव सार्वजनिक मंचों से कहा करते थे कि ‘समाजवादियों की कथनी-करनी में भेद नहीं होता, बात से पलटना भी गलत है। मगर वही मुलायम थोड़ी-थोड़ी देर में अपनी बात से मुकर जा रहे हैैं। इससे कार्यकर्ताओं में गफलत बढ़ रही है। कई पुराने सपाई नया ठौर तलाशने में लग गए हैैं।
वर्ष 2016 में कुनबे का संग्राम शुरू होने पर मुलायम ने जो सियासी पैंतरेबाजी शुरू की, उससे उनके बारे में बात से न पलटने की जो धारणा थी, वह टूटने लगी। जनवरी 2017 के बाद से तो वह कुछ-कुछ अंतराल में परस्पर विरोधी बातें कहने लगे हैैं जिससे उनके समर्थक भी मायूस हैं और कहने लगे हैं कि, ‘नेताजी, कब पलट जाएंगे, कहा नहीं जा सकता। मुलायम तीन दिन पहले इटावा में अजंट सिंह यादव के घर में शिवपाल यादव से मिले, दो एक घंटे वहां साथ रहे मगर शनिवार को कहा कि ‘शिवपाल से एक हफ्ते से नहीं मिले, समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने पर उनकी बात भी नहीं हुई।इसके कुछ घंटे बाद यानी रविवार को वह मैनपुरी पहुंचे। वहां जिस अंदाज में बोले, वह एक दिन पहले के बयान से न सिर्फ उलट था बल्कि शिवपाल यादव द्वारा परिवार के ही एक सदस्य के लिए इस्तेमाल किये गये शकुनि शब्द को भी उन्होंने सही ठहरा दिया। यहां तक कह दिया कि शिवपाल को हराने के लिए सात करोड़ रुपए खर्च किये गये, मगर जनता ने उनका सम्मान रख लिया। यही वह बातें हैैं जिनसे कार्यकर्ताओं में उलझन बढ़ रही है। वह समझ नहीं पा रहे कि मुलायम किस राह पर चलना चाहते हैैं। मुलायम के साथ राजनीति करने वाले एक वरिष्ठ सपाई कहते हैैं कि, ‘नेताजी पार्टी की दुर्दशा से आहत हैैं, संघर्षो से जिसने पार्टी बनाई हो, वह उसकी बदहाली से बेचैन होगा ही। उनके बयानों का विरोधाभास इसी बेचैनी से उपजा है।

कब क्या बोले
16 जनवरी : (लखनऊ) – तीन बार बुलाया मगर अखिलेश ने मेरी बात नहीं सुनी। मैं लडऩे के लिए तैयार हूं।
20 जनवरी : (लखनऊ) -मेरा आशीर्वाद अखिलेश के साथ है, जितना किया जा सकता था, उसने किया।
29 जनवरी 2017 (दिल्ली) – हम कांंग्रेस केसाथ गठबंधन के खिलाफ हैैं। प्रचार नहीं करेंगे।
एक फरवरी 2017 (दिल्ली) -नौ फरवरी से हम प्रचार करेंगे। गठबंधन को आशीर्वाद भी देंगे।
दो अप्रैल 2017 (मैनपुरी) – प्रधानमंत्री मोदी ने सही कहा था कि जो बाप का न हुआ वह आपका क्या होगा। मेरा बेटा ही मेरे खिलाफ था।
17 अप्रैल: (इटावा-मैनपुरी) – अखिलेश ने अच्छा काम किया, कांग्रेस से गठबंधन के चलते हार हुई।
छह मई : (लखनऊ) -शिवपाल ने मोर्चा बनाने पर बात नहीं की, वह नाराज हैं। बात करूंगा, पार्टी टूटने नहीं जा रही।
सात मई: (मैनपुरी) -अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाना गलती थी, उसने उसी कांग्रेस से गठबंधन कर लिया जिसने मेरी जिंदगी तबाह करने में कसर नहीं छोड़ी।

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