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लोनिवि ने चहेते अभियंताओं को प्रोन्नति देने के लिए आयोग की सूची को दिखाया ठेंगा

लखनऊ : भ्रष्टाचार के मकड़जाल में फंसे लोक निर्माण विभाग ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग से 30 जनवरी 2014 को विधुत यांत्रिक विभाग के अवर अभियंता से सहायक अभियंताओं की प्रोन्नति के लिए जारी की गयी सूची में हेराफेरी कर वरिष्ठता ही चहेते अभियंताओं की प्रोन्नति के लिए दरकिनार लगा दी गयी. जिसके चलते दो दर्जन से अधिक अभियंताओं को इसका लाभ इसलिए नहीं मिल सका क्योंकि वे सेवानिवृत्त हो गए.

इन सेवानिवृत्त हुए अभियंताओं में राम प्रताप सिंह, बृजनंदन स्वरुप, हरीश चंद्र लाल, गोपाल चंद्र शर्मा, हरी ओम जोहरी, जेके बोस तथा विजय कुमार आदि अभियंता शामिल हैं. बताया जाता है कि शासन ने जो 29 अक्टूबर 1985 को तदर्थ प्रोन्नति सहायक अभियंताओं की सूची जारी की थी उसमें तो इन अभियंताओं का नाम ही नहीं था. जबकि ये सभी अभियंता उनसे काफी वरिष्ठ थे.

गौरतलब है कि शासन में इस कदर भ्रष्टाचार फैला हुआ है कि लोक सेवा आयोग कि सूची जारी करने के एक साल बाद नियमावली 88 का संशोधन दिनांक- 20 दिसंबर 2001 के द्वारा महावीर प्रसाद वर्मा,सुरेंद्र कुमार अवस्थी, किसी मिश्रा, जावेद इकबाल,बीएमएल गर्ग तथा विनोद कुमार धवन आदि 13 अभियंताओं को दिनांक-11 अक्टूबर 1994 से विनियमित शासनादेश संख्या 1041 / 2008 दिनांक 10 दिसंबर 2014 जारी किये गए. दिलचस्प बात है कि नियमावली 88 का संशोधन तो वर्ष 2001 में किया गया, लेकिन अभियंताओं को प्रोन्नति वर्ष 1994 से दे दी गयी. और तो और इन 21 अभियन्ताओं के पद भी सृजित नहीं हैं.

दूसरी तरफ क्षेत्रीय मुख्य अभियंताओं द्वारा पांच वर्ष की सेवा पूर्ण करने पर 54 सहायक अभियंताओं को वेतनमान 3000 – 4500 वर्ष 1995 में स्वीकृति कर शासन को अवगत कराया गया. जिसके बाद शासन ने ही मुख्यअभियन्ताओं के इन आदेशों को 9 साल बाद गलत मानते हुए रिकबरी के आदेश कर दिए. जिसके चलते अभियंताओं ने अपने साथ इंसाफ किये जाने के लिए कई अदालतों का दरवाजा खटखटाया. नतीजतन उन्हें अदालतों से राहत भी मिली. बताया जाता कि सेवानिवृत्त हुए अभियंताओं को करीब 18 साल होने को आये हैं और अब शासन पुनरीक्षित वेतनमान करने पर विचार कर रहा है. जबकि ये सभी अभियंता सेवानिवृत्त से पूर्व ही 18 वर्ष की सेवा पूर्ण करने पर समयमान वेतनमान के हक़दार थे. जानकर सूत्र बताते हैं कि अभी तक लगभग आठ वरिष्ठ अभियंताओं को प्रमुख अभियंता कार्यालय से संस्तुति इसलिए नहीं जारी की जा रही है क्योंकि वहां तैनात लिपिक अजीत सिंह ने इस प्रकरण की पत्रावली दबा रखी है.

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