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न्याय को भटकती रेप पीड़िता, ‘कायर’ उत्तर प्रदेश!

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क्या फर्क पड़ता है कि योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को कह दिया कि किसी भी अपराधी को बख्शा नहीं जाएगा? ये बात तो वो पिछले एक साल से कह रहे हैं! लेकिन उनकी सरकार बनने के ठीक बाद एक महिला उन्हीं के राज्य में पड़ने वाले उन्नाव जिले में अपनी आबरू के तार-तार होने के बाद न्याय की गुहार लगा रही है.

इस कदर कायर हूं कि उत्तरप्रदेश हूं’, विद्रोही कवि धूमिल ने यूं ही उत्तर प्रदेश को कायर नहीं कहा होगा. जरूर उनके कुछ आशय रहे होंगे. उनके द्वारा इस लाइन को लिखे जाने के बाद करीब आधी सदी बीत चुकी है लेकिन जिस तरीके की घटनाएं राज्य से आ रही हैं वो निश्चित तौर पर वहां की सरकार को ‘नैतिक कायर’ कह देने के लिए काफी हैं.

आखिर ये कैसा राज है! समाजवादी पार्टी के गुंडाराज से मुक्ति दिलाने के लिए ही तो प्रदेश की जनता ने बीजेपी को गद्दी बड़ी शान से सौंपी थी. इतनी सीटें दी थीं कि राज्य के चुनावी आंकड़ों का इतिहास-भूगोल सब बदल दिया लेकिन बदले में क्या मिला? यही कि दिन ब दिन होते एंकाउंटरों के बीच अपराध का बढ़ता ग्राफ? प्रदेश की गद्दी पर एक योगी हो और राज्य में एक महिला योगी के विधायक से अपनी आबरू बचाती फिरे? उसके पिता की संदिग्ध हालात में मौत हो जाए और मौत के बाद शरीर पर मारपीट के निशान मिलें? क्या यही वो सरकार है जिसके लिए जनता ने अखिलेश यादव की समाजवादी सरकार को सत्ता से दूर उठाकर फेंक दिया था?

रविवार को जब एक खबर सनसनी की तरह चैनलों और वेबसाइटों पर दौड़ने लगी कि यूपी के उन्नाव जिले से बीजेपी विधायक कुलदीप सेंगर के खिलाफ पिछले एक साल से एक दुष्कर्म पीड़ित महिला आरोप लगा रही है लेकिन पुलिस उसकी सुनने को तैयार नहीं है. सोमवार को एक और खबर आई कि उस महिला के पिता की पुलिस हिरासत में संदिग्ध हालात में मौत हो गई है. सोशल मीडिया में पीड़िता के पिता का एक वीडियो भी वायरल हुआ जिसमें उनकी पीठ पर पिटाई के भयानक दाग दिखाई दे रहे हैं.

ये उन्नाव जिला है! महाकवि निराला का उन्नाव! विश्वास कीजिए अगर निराला की आत्मा कहीं होगी तो कराह रही होगी कि जहां से उनका पैतृक रूप में ताल्लुक है वहां एक बलात्कार पीड़िता महिला न्याय के लिए आत्मदाह के प्रयास को विवश है. उसकी कोई सुनने वाला नहीं है. पीड़िता के पिता को पीटा जा रहा है. और खबर तब बनती है जब उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ट्वीट करते हैं. अब जरा सोचिए कि अखिलेश यादव इस खबर को ट्वीट न करते तो एक साल का अरसा जैसे गुजरा वैसे और भी वक्त गुजर जाता. हर रोज अखबारों के पन्ने काले होते लेकिन इस खबर को जगह नहीं मिलती.

मुख्यमंत्री आवास पर आत्मदाह की कोशिश करनेवाली दुष्कर्म की पीड़िता के पिता की ‘पुलिस कस्टडी’ में दर्दनाक मृत्यु अत्यंत दुखदायी है। इसकी सर्वोच्च स्तरीय निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए। महिलाओं के मान की रक्षा के लिए नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री को तुरंत इस्तीफ़ा दे देना चाहिए।

हालांकि ऐसा नहीं है कि समाजवादी सरकार दूध की धुली रही है. अखिलेश यादव की सरकार में भी शाहजहांपुर जिले में एक पत्रकार को जिंदा जलाकर मार दिया गया था. सरकार के एक मंत्री का नाम भी उस केस में उछला था. लखनऊ से दिल्ली तक खूब हो-हल्ला मचा था तब कहीं जाकर राज्य सरकार जागी थी. कहा जाता है उस मामले में मृतक पत्रकार के परिवार को सत्ता पक्ष की तरफ से खूब धमकियां भी मिली थीं. और ये कुलदीप सेंगर भी बीजेपी में आने के पहले तक समाजवाद की ही सेवाएं बजा रहे थे.

लेकिन फिर भी अखिलेश एक विपक्षी नेता के तौर पर तो अपना काम ठीक कर रहे हैं. उनकी सरकार में हुई गुंडागर्दी पर चर्चा खूब हुई है और आगे भी होगी. लेकिन योगी सरकार, जो लगभग रोज अपने प्रशासन के कारनामों को लेकर अपनी सीना ठोंकती है, से ऐसी उम्मीद शायद किसी को नहीं थी. इस मामले को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी योगी सरकार को आड़े हाथों लिया है. एक युवती भाजपा MLA पर बलात्कार का आरोप लगाती है| MLA को गिरफ्तार करने के बजाय पुलिस युवती के पिता को हिरासत में ले लेती है| उसके तुरंत बाद पुलिस कस्टडी में उनकी मृत्यु हो जाती है|

सोमवार को भद पिटने के बाद योगी सरकार की नींद खुली. आरोपी विधायक का भी वही रटा-रटाया बयान सामने आया. उन्होंने कहा कि मुझे फंसाने का षड्यंत्र किया जा रहा है. पीड़िता मेरा और मेरे भाई का नाम जानबूझकर शामिल करवाना चाहती है. विधायक की बात की तस्दीक सोमवार शाम प्रदेश के गृह विभाग ने भी कर दी. एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया गया कि जब इस मामले में शुरुआती एफआईआर में विधायक और उसके भाई का नाम नहीं है. 164 के बयान में विधायक का नाम कहीं नहीं लिया गया. लेकिन क्या ये मामला इतना सीधा है? ये सोचने वाली बात नहीं कि जो पीड़िता रविवार को लखनऊ में आत्मदाह की कोशिश करती है उसी रात उसके पिता की मौत पुलिस कस्टडी में हो जाती है. पीड़िता की बहन ने भी ये बयान दिया है कि हमारे पिता की तो मौत हो ही चुकी है. हम चाहते हैं मामले में विधायक और उसके भाई का नाम भी शामिल किया जाए.

अब ये तो जांच के बाद ही खुलासा हो पाएगा कि आखिर इस केस में शुरुआत से चल क्या रहा है? विधायक कुलदीप सेंगर ने इस मामले को किस हद तक मैनेज करने की कोशिश की है या फिर उन पर लगे सभी आरोप बेबुनियाद हैं. लेकिन ये तभी पता चल पाएगा जब योगी सरकार ढंग से मामले की जांच कराए अन्यथा हमारे समाज में रसूखदार लोगों द्वारा केसों की लीपापोती कितनी आसानी से कर दी जाती है, इसके हजारों उदाहरण से इतिहास अटा पड़ा है. योगी जिस कदर सीना ठोंककर अपने प्रशासन की तारीफ करते हैं, इस मामले में भी उन्हें दिखाना होगा कि उनकी बातें कोरी नहीं हैं. उनमें कुछ दम भी है. नहीं तो बीते साल हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी छोड़कर भगवाई बनने वाले कुलदीप सेंगर ने उनकी कड़क प्रशासक छवि को पलीता लगाने में कोई कसर नहीं बाकी रखी है.

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