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सपा-बसपा के बीच, अब अचानक बढ़ने वाली नजदीकी और समर्थन के रहस्य….

सपा बसपा के बीच दूरी 25 साल से है। अब अचानक बढ़ने वाली नजदीकी के रहस्य भी जानने की इच्छा प्रबल है। एक वजह वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव में अपना-अपना वजूद बचाए रखना है। उल्लेखनीय है कि स्टेट गेस्ट हाउस कांड के बाद से समाजवादी पार्टी को दुश्मन नंबर एक बताने वाली मायावती का बदले सियासी हालात में सपा के प्रति नरम रुख होना चौंकाने वाला नहीं है। दरअसल फूलपुर और गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में समाजवादी उम्मीदवारों को समर्थन देने के एवज में बसपा राज्यसभा में अपने एक उम्मीदवार को समायोजित करा लेना चाहती है।

सपा-बसपा एक स्वर बोलने को मजबूर

प्रदेश में राज्यसभा की दस सीटों के लिए सोमवार से नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू होगी। सूत्रों का कहना है कि उच्च सदन में भागीदारी बढ़ाने के लिए सपा-बसपा एक स्वर बोलने को मजबूर हुए हैं। दोनों के बीच बने तालमेल के मुताबिक बसपा अपना एक सदस्य सपा के सहारे राज्यसभा में भेजेगी, वहीं विधान परिषद के चुनाव में बसपा सपा का साथ देगी। उपचुनाव में सपा व बसपा के बीच सब कुछ ठीक रहा तो राज्यसभा में मायावती की वापसी संभव होगी या वह अपने भाई आनंद कुमार को मौका देंगी।

जिस तरह मायावती बसपा में आनंद का दखल बढ़ा रही हैं, उससे जाहिर है कि आनंद कुमार को राज्यसभा भेजा जा सकता है। माना जा रहा है कि विभिन्न जांचों में फंसे आनंद को राहत देने के लिए बसपा सुप्रीमो ने अपने मिजाज से इतर फैसला लेते हुए ही सपा के साथ जाने का मन बनाया है। वहीं, राज्यसभा सदस्य बनने के लिए सपा में मारामारी है। बसपा से गठबंधन होने से सपा नेतृत्व को भी विवादों से राहत मिल सकेगी।राज्यसभा व विधान परिषद चुनाव में सपा के साथ रहने के संकेत मायावती ने भी दिए हैं। उन्होंने कहा कि हमारी पार्टी में अभी इतने विधायक नहीं हैं कि अपने दम पर अपना प्रत्याशी राज्यसभा में भेजा जा सके। समाजवादी पार्टी के पास भी इतने सदस्य नहीं हैं कि अपने दो लोगों को राज्यसभा भेज सके।

 

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