The more you go, go to the height but remember, I still have the pace.
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वल्लीपुर/सुल्तानपुर।
मजरूह सुल्तानपुरी बीसवीं सदी के उर्दू /हिंदी के मशहूर शायर जिनका जन्म दिवस आज बड़े धूमधाम से बल्दीराय तहसील क्षेत्र के सेंट जोन्स स्कूल पारा गनापुर में एक शाम मजरुह सुल्तानपुरी के नाम से मनाया गया जिसमें देश के नामी गिरामी शायरों/ कवियों ने शिरकत की मुंख्य अतिथि सासंद सदस्य डा.संजय नें दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुंभारंम्भ किया मशहूर शायर वसीम रामपुरी अपनी कविताओं से लोगों भाव विभोर कर दिया “सच अगर बोल देतां महफिल में कितने चेहरे उतर गये होते। वही विकास बौखल ने अपने चिर परिचत अंदाज में मौजूदा सरकार पर तंजिया किया “किसी खंजर से न तलवार से जोड़ा जाये,सारी दुनिया को प्यार स् जोड़ा जाये,ऐ किसी सख्स को दोबारा न मिलने पाये, प्यार के रोग को आधार से जोड़ा जाये।
हिलाल बदायूँनी नें आशिकाना शेर पढ़कर महफ़िल में चार चांद लगा दिया “गमें फराग का मंजर भी दर्द देता है,तेरे बगैर तो बिस्तर भी दर्द देता है। कितना जीना है बुलंदी पर चला जा लेकिन,याद रखना मेरी रफ्तार अभी बाकी है। चांदनी शबनम नें दर्शकों से खूब तालियाँ बटोरीं,उर्दू अदब की मशहूर शायरा शाइस्ता सना ने अपने अशआर जिंदगी के लिए मर-मार के जिया जाता है, खून का घूंट भी हंस हंस के पिया जाता है,हमने देखा है कि दो वक्त की रोटी के लिए अब तो मां बाप का बटवारा किया जाता पढ़ कर खूब तालियां बटोरी।कवि करामराज शर्मा तुकांत ने पढ़ा”कपड़े की मानिंद सखे यूँ रंग न बदलो,अपने जाएं रूठ प्रिये यूँ ढंग न बदलो” पढ़ कर आज के दोस्ती पर प्रहार किया।
मुशायरे की अध्यक्षता इसौली विधायक अबरार अहमद ने किया। शायर अल्ताफ जिया,उस्मान मीनाई, शाईस्ता सना, आमिल सिद्दीकी, आदि शायरों नें अपने अपने अंदाज से कविताएं पढ़ी मजरुह सुल्तानपुरी बेलफेयर सोसाइटी के चेयरमैन सैय्यद मुशीर अहमद ने मजरुह के जीवन प्रकाश डालते हुए कहा कि हिंदी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकारऔर प्रगति शील आंदोलन के उर्दू के सबसे बड़े शायरों में से एक थे। इनका जन्म 1 अक्टूबर सन 1919 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के निजामाबाद गांव में हुआ था। इनके वालिद यहीं पे पुलिस मे उप निरीक्षक थे ।इनके पुरखों की असल पुस्तैनी जमीन सुल्तानपुर के गजेहडी गांव में थी ।मजरूह सुल्तानपुरी के बचपन का असली नाम “असरार उल हसन खान” था ।मगर आज देश उन्हें “मजरूह सुल्तानपुरी” के नाम से जानती है। मजरूह जी के गुरु “जिगर मुरादाबादी” थे, जिनके सहयोग से इन्होनें एक बुलन्द मुकाम हासिल किया। ये बामपंथी विचारधारा के थे जिसके चलते इन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, इन्हें दो वर्ष की जेल यात्रा भो करनी पड़ी ।फ़िल्म जगत के नौशाद ,अनुमालिक , जतिनललित, ए आर रहमान,और लेस्ली लेविस के साथ इन्होंने भारतीय फिल्मों को बेमिशाल गीत पेश किए । कईदर्जन फिल्मों में इनके गीतों ने धूम मचाई है जो आज भी बेजोड़ है। सन 1965 में फ़िल्म दोस्ती के गीत “चाहूंगा में तुझे सांझ सवेरे ,के लिए इन्हें”फ़िल्म फेयर “अवार्ड से नवाजा गया। सन 1993 में इन्हें “दादा साहेब फाल्के” पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनकी मृत्यु 24 मई सन 2000 की मुम्बई में हुई।आज भी सुलतानपुर की अवाम अपने बेमिशाल शायर को नही भूल पा रही है।
शायद कभी भूल भी नही उस्मान मीनाई नें अपने अंदाज़ में सरकार की मौजूदा व्यवस्था पर तंज कसा “अपने घर में इसे इज्ज़त से अदब से रखों,वह अगर माँ हैं तो गलियों में भटकतीं क्यों है। जाहिल सुल्तानपुरी नें अपनी कविताओं से श्रोताओं का मन मोह लिया। इस मौके पर समाजसेवी डाक्टर नफीस अहमद, रिटायर केन कमिश्नर डाक्टर सुल्तान अहमद, अब्दुल रहमान खान, पत्रकार इम्तियाज़ अहमद,पत्रकार सोहेल आलम,शोहेल आविद,एडवोकेट नफीस अहमद,जिला पंचायत अध्यक्ष प्रति निधि शिवकुमार सिंह,कफ़ील अहमद,इकरार अहमद,प्र०शि० संघ के अध्यक्ष वेद प्रकाश सिंह, मास्टर शमीम खान,आदित्य शुक्ला, कदीर अहमद,सगीर अहमद,जिला पंचायत सदस्य दरोगा यादव,विशाल शुक्ला, निसार अहमद पूर्व प्रधान, मुकेश अग्रहरि,अय्यूब बेग, ,हाजी अंसार ठेकेदार,अकील अहमद प्रधान,हजारों लोग शामिल हुए।आयोजन वकील नफ़ीस अहमद ने किया। कायर्क्रम का संचालन शायर हिलाल बदायूँनी नें किया।
Reported by – शिव कुमार दूबें