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यूपी: गोरखपुर में 29 साल बाद चौंकाने वाला रुझान! SP आगे-BJP पीछे…

गोरखपुर: सीएम योगी आदित्‍यनाथ से जुड़ी गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में बड़ा सियासी उलटफेर देखने को मिल रहा है. 29 साल बाद पहली बार बीजेपी इस सीट पर पिछड़ रही है. हालांकि पहले राउंड में बीजेपी को बढ़त मिली थी, लेकिन दूसरे राउंड में सपा को 24 वोटों की बढ़त मिली. उसके बाद से सपा प्रत्‍याशी प्रवीण निषाद ने लगातार बढ़त बनाए रखी है. बीजेपी नेता उपेंद्र दत्‍त शुक्‍ला काफी पिछड़ गए हैं. वहीं दूसरी तरफ फूलपुर में भी सपा के प्रत्‍याशी नागेंद्र पटेल ने निर्णायक बढ़त ले ली है. गोरखपुर में सपा प्रत्‍याशी प्रवीण निषाद ने इससे पहले मतगणना में गड़बड़ी का आरोप लगाया था. उसके बाद पहले राउंड के रुझान जारी होने के बाद आंकड़े जारी नहीं किए गए. विवाद बढ़ने पर गोरखपुर के जिलाधिकारी मतगणना केंद्र पर पहुंच गए. इसकी गूंज लोकसभा में भी सुनाई दी, वहां इस मसले पर सत्‍ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोंकझोंक हुई.

CM योगी की प्रतिष्‍ठा
गोरखपुर सीट से सीएम योगी आदित्‍यनाथ पांच बार लोकसभा सदस्‍य रहे. सीएम योगी से पहले उनके गुरू महंत अवैद्यनाथ ने तीन बार इस लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. इसके साथ ही इसमें संदेह नहीं कि कई मतदाताओं की गोरखनाथ मठ के महंत में आस्था है. इस लिहाज से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रभाव को हालांकि नकारा नहीं जा सकता. इसमें संदेह नहीं कि कई मतदाताओं की गोरखनाथ मठ के महंत में आस्था है. इस सीट से प्रतिष्‍ठा जुड़ी होने के कारण बदलते जातीय समीकरण को देखते हुए सीएम योगी आदित्‍यनाथ ने यहां 16 चुनावी रैलियां कीं, जबकि सपा नेता अखिलेश यादव ने केवल एक रैली की है. कांग्रेस ने डॉ सुरहिता चटर्जी करीम को प्रत्‍याशी बनाया है.

जातीय गणित
गोरखपुर के जातीय गणित को यदि देखा जाए तो यहां 19.5 लाख वोटरों में से 3.5 लाख वोटर निषाद समुदाय के हैं. संख्‍याबल के लिहाज से यह सबसे प्रभावी जाति समुदाय है जोकि कुल वोटरों का 18 प्रतिशत हिस्‍सा है. सपा-बसपा तालमेल के बाद यदि जातीय समीकरण देखा जाए तो निषाद समुदाय के अलावा यहां करीब साढ़े तीन लाख मुस्लिम, दो लाख दलित, दो लाख यादव और डेढ़ लाख पासवान मतदाता हैं. संभवतया इसीलिए सपा ने प्रवीण कुमार निषाद को अपना प्रत्‍याशी बनाया था.

फूलपुर
फूलपुर संसदीय सीट से भी बीजेपी पिछड़ गई है. यहां पर सपा को इतनी बढ़त मिल गई है कि उसका जीतना तय माना जा रहा है. हालांकि बीजेपी के लिए यह सीट बेहद अहम रही है क्‍योंकि 1952 के बाद पहली बार 2014 में पार्टी ने यह सीट जीती थी. बीजेपी नेता केशव प्रसाद मौर्य ने डिप्‍टी सीएम बनने के बाद इस सीट से इस्‍तीफा दे दिया था. ऐसे में यदि बीजेपी यहां से हारती है तो केशव प्रसाद मौर्य की प्रतिष्‍ठा पर असर पड़ेगा.

पटेलों का दबदबा
यहां के 18 लाख वोटरों में से 17 प्रतिशत मतदाता पटेल(कुर्मी) समुदाय से हैं. यह इस लिहाज से फूलपुर का सबसे अहम जातीय समुदाय है. इसकी अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1984-99 तक यहा पटेल समुदाय का नेता ही चुनाव जीतता रहा है. इसी पृष्‍ठभूमि में संभवतया बीजेपी और सपा ने यहां से पटेल उम्‍मीदवार को इस बार मैदान में उतारा है. हालांकि फूलपुर एक जमाने में कांग्रेस का गढ़ माना जाता था और यहीं से भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू चुनकर संसद पहुंचे थे.

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