‘अमेरिका का पेरिस समझौते से पीछे हटना पर्यावरणीय बेईमानी है। अमरीका खुद पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे ज्यादा कार्बन का उत्सर्जन करता है और पेरिस समझौता उसने खुद लागू कराया था। आज ट्रम्प उससे पीछे हट कर पूरी दुनिया के पर्यावरण को बिगाड़ना चाहते हैं। इसकी जितनी निंदा की जाए कम होगी।’ यह कहना है दुनिया में जल पुरुष के नाम से मशहूर राजेंद्र सिंह का, जो यहां चंबल के संरक्षण और सफाई से जुड़े एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, ‘मरी हुई नदियों के देश में चंबल ही एक मात्र ऐसी नदी शेष रह गई है जिसका पानी आज भी नहाने और आचमन करने योग्य है और सूखने के संकेत देती यह नदी अभी भी सदा नीरा है। हमने अपनी सारी नदियां मार दी। गंगा का पानी कानपूर में स्पर्श योग्य भी नहीं है। कावेरी पूरी तरह सूख गई है। उसमें एक बंूद पानी नहीं है। पूरा कावेरी बेसिन जैसलमेर के रेगिस्तान जैसा दिखता है।’
विश्व पर्यावरण दिवस पर जिला प्रशासन की तरफ से चंबल की आरती उसकी पूजा और सफाई का एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया था। चंबल के पास बने देवरी घड़ियाल पुनर्वास केंद्र में आयोजित कार्यक्रम में श्री सिंह ने कहा, ‘चंबल देश में एक मात्र ऐसी नदी बची है जिसके पर्यावरण को अभी तक कोई गंभीर खतरा नही पहुंचा है। जो थोडा बहुत नुकसान हुआ भी है, उसकी भरपाई हो सकती है।’ उन्होंने चंबल के लोगों की सराहना की कि वे अभी से ही चंबल की साफ सफाई और देखरेख में लग गए है। इससे चंबल का रोग ठीक हो जाएगा और उसे देश की अन्य नदियों की तरह आइसीयू में भर्ती नहीं कराना पड़ेगा।उन्होंने कहा कि किसी भी नदी को मारने में रेत चोरी की बड़ी भूमिका होती है। इसका समाधान है। नदियों की मैपिंग करके वैज्ञानिक तरीके से यह पता लगाया जा सकता है कि नदी के किस हिस्से में रेत में जीवाणु मौजूद हैं। उसे सुरक्षित करके शेष हिस्से में से रेत निकाली जा सकती है।
उन्होंने कहा कि जरूरत सरकारों द्वारा एक तरीके को अपनाने की है। नदियों को सदानीरा बनाये रखने में पेड़ों की विशेष भूमिका होती है। नदी के जलग्रहण क्षेत्र में पेड़ों को लगाने की जरूरत है। यह एक लेनेदेन है। हम प्रकृति से जितना लेते हैं, उतना लौटना भी जरूरी होता है। लेकिन हम लौटना भूल गए हैं। इस असंतुलन को ठीक करना जरूरी है। पेड़ धरती का असंतुलन दूर करते हैं। देश में आज भी कई हिस्से हैं, खासतौर पर राजस्थान में, जहां साल में 300 मिमी भी बारिश नहीं होती। राजस्थान के ऐसे ही इलाके में उन्होंने 11800 छोटे बडे स्ट्रक्चर, जोहड तालाब, बनवा कर 7 नदियों को जीवित किया है और ये सभी नदिया चंबल के जलग्रहण क्षेत्र में आती है।सिंह ने कहा कि उन्होंने अपनी पूरी जवानी चंबल के इलाके में पानी सरंक्षण में लुटा दी और शेष जीवन वे इसी काम को करते रहेंगे उन्होंने कार्यक्रम में मौजूद लोगों को चंबल के संरक्षण में लगे रहने की शपथ दिलाईं। उन्होंने देवरी केंद्र पर चल रहे घड़ियाल पुनर्वास कार्यक्रम का भी जायजा लिया।
इस अवसर पर चंबल संरक्षण के काम में स्वप्रेरणा से लगे कलेक्टर विनोद शर्मा ने कहा कि मुरैना में पानी की स्थिति बेहद खराब है। यहां पिछले 3 सालों से औसत से भी आधी कुल 700 मि.मी. वर्षा हो रही है। 3 साल से सूखे के हालात हैं। पेयजल का विकट संकट है। इस जिले में पानी का स्तर लगातार गिर रहा है। यह भयानक तस्वीर है जिसका एहसास लोगों को नहीं है। चंबल की हालत भी खराब है। इस साल पहली बार श्योपुर के पास चंबल के सूखने की सूचना आई है। लोग पैदल नदी पार कर रहे हैं, यह डरावनी तस्वीर है।
उन्होंने कहा कि गांवों में पानी के लिए झगडेÞ शुरू हो गए हैं। आज हर आदमी चाहता है कि सरकार उसके घर के बाहर एक हैंडपम्प लगा दे। बारिश का चक्र टूट रहा है। यह प्रकृति के साथ किए हमारे अन्याय का प्रतीक है।