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कतर का भारी संकट

इस बार के पर्यावरण दिवस की थीम ‘कनेक्टिंग पीपल टू नेचर’ रही है। इस थीम का मुख्य उद्देश्य यही है कि मानव प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का उपयोग प्रकृति से जुड़ कर ही करे। विश्व पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत 1974 से हुई थी। महात्मा गांधी ने कहा था कि प्रकृति के पास सबकी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं लेकिन किसी के लालच को पूरा करने के लिए उसके पास संसाधन नहीं हैं।  जिस तरह मानव जाति तथाकथित विकास के नाम पर संसाधनों का शोषण कर रही है उससे उसके सामने अनेक प्रकार की समस्याओं ने जन्म ले लिया है। अब जरूरत इस बात की है कि संसाधनों का दुरुपयोग न करके उनका सदुपयोग किया जाए, तभी भविष्य में मानव जाति का पृथ्वी पर अस्तित्व बना रहेगा वरना उसका विनाश अवश्य हो जाएगा।

मिस्र, सउदी अरब, बहरीन और यमन द्वारा कतर से कूटनीतिक संबंध तोड़ लेने के बाद न केवल मध्य-पूर्व की राजनीति में अस्थिरता के हालात पैदा हो गए हैं बल्कि इससे आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष और वैश्विक अर्थव्यवस्था की गति को भी नुकसान पहुंचने की आशंका है। वैश्विक बाजार में तेल के दाम बढ़ने लगे हैं, बाजार उथल-पुथल की आशंकाओं से घिर रहा है। कूटनीतिक स्तर पर देखें तो इस विवाद के तार क्षेत्रीय टकरावों से जुड़े हैं लेकिन अमेरिका, रूस और तुर्की के हितों से संबंधित होने के कारण यह मामला जटिल हो गया है। दरअसल, कतर पर आतंकी संगठनों, विशेषकर मुसलिम ब्रदरहुड को सहयोग देने का आरोप है। सवाल मौजूं है कि इस्लामिक देशों का यह कड़ा कदम अगर कतर प्रकरण में सही है तो फिर पाकिस्तान, जो कि आतंकवाद की वैश्विक नर्सरी है, के विरुद्ध अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई है? यह दोहरा रवैया क्यों?

गौरतलब है कि 2014 में ऐसे प्रतिबंध का व्यापक असर हुआ था। कई देशों के नागरिकों को कतर से निकाल दिया गया था। आज भारत के सामने यही संकट है। करीब पांच लाख भारतीयों को कतर से वापस लाना भी एक चुनौती होगी। खैर, वक्त का तकाजा है कि कतर संकट का समाधान तुरंत निकले। आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक मुहिम में एक समानता का सिद्धांत लागू हो। भारत भी कूटनीति प्रयास तेज करके अपने लोगों को संकट से निकाले।

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