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एक ऐसा आदमी जिसने अपनी मौत के बाद खत्म कर दी राजा की पूरी नस्ल

A man who ended his death after the death of the king’s entire race

रास्पुतिन, रूस की ऐसी रहस्यमयी शख्सियत जिसे ना तो गोली मार पाई, ना ही सायनाइड जहर। एक ऐसा पुरुष जिसमें सम्महोन की ऐसी शक्ति थी जिसने रूस के शासक को भी अपना गुलाम बना लिया था। कचरे के ढेर में रहने वाला रास्पुतिन कब राजमहल का सबसे अहम व्यक्ति बन गया कोई नहीं जानता। करीब 120 साल पहले रुस के राजा जार निकोलस सेकंड और उनकी बीवी महारानी अलेक्जेंड्रा पर रास्पुतिन का जादू आज भी कहानियों में गाया जाता है। आपको बता दें कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद रूस के 300 सालों से चले आ रहे साम्राज्य का अंत हुआ था। 16-17 जुलाई की रात राजा जार के पूरे परिवार की उनके महल में घुसकर हत्या कर दी गई थी। इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं उस दौर के सबसे खतरनाक शख्स की कहानी, जिसका श्राप इसकी वजह माना जाता है। उसकी बातें सच होने लगीं…

ग्रेगोरी रास्पुतिन उसी साल पैदा हुआ था जिस साल महात्मा गांधी पैदा हुए थे। 1869 में एक किसान परिवार में जन्मा रास्पुतिन घर बार छोड़कर जोगी बन गया। यूराल की पहाड़ियों के पास वो अकेला भटकता रहता था। 1892 में रास्पुतिन की जिंदगी बदली। एक मठ में काफी समय बिताने के बाद देखा गया कि वह जो भी कहता वो सच हो जाता था। उसका अंदाज कुछ ऐसा था कि लोग सहम जाते थे। बीमार और डरे हुए लोगों को ऐसे लोगों पर बहुत असामान्य भरोसा हो जाता है। माना जाने लगा कि रास्पुतिन के पास दैवीय शक्तियां आ चुकी थीं। वो बेहद जिद्दी और घमंडी हो चुका था।

राजमहल से शुरू हुआ मायाजाल
1906 में रास्पुतिन की ख्याति जार निकोलस के दरबार तक पहुंची। यहीं से उसके मायाजाल की शुरुआत हुई। जब रास्पुतिन दरबार पहुंचा, तब रानी अलेक्जेंड्रा लंबे वक्त से अपने बेटे के लिए एक वैद्य खोज रही थी। उनके बेटे को हीमोफिलिया था। राजकुमार को एक जरा सा कट लग जाने पर जान जाने का खतरा बना रहता था। उस वक्त इस बीमारी को कोई इलाज नहीं था। ऐसे में रास्पुतिन ने रानी को भरोसा दिलाया कि राजकुमार को कुछ नहीं होगा। उसने ना जाने ऐसा क्या किया कि कुछ ही दिनों में राजकुमार बिल्कुल ठीक हो गया। इससे शाही दरबार रास्पुतिन का मुरीद होने लगा।

एक साथ दर्जनों महिलाओं से बनाता था संबंध
राजघराने में बढ़ती इज्जत ने रास्पुतिन को घमंडी अौर अय्याश बना दिया था। वह कई औरतों के साथ रहने लगा। सुबह से लेकर रात तक वह शराब और औरतों में डूबा रहता। उसे नहलाने के लिए कई महिलाएं लगी रहतीं। शाही दरबार की औरतों के साथ सेक्स और सनक में डूबने के उसके किस्से फैलने लगे। कुछ का मानना है कि वह इस कदर अय्याश हो चुका था कि एक साथ दर्जनों महिलाओं से संबंध बनाता था। कई बार महीनो तक अपने कपड़े नहीं बदलता था। उसके पास से बकरे की तरह महक आती थी। फिर भी महिलाएं उसके करीब ही रहती थीं। ये सम्महोन विद्या की वजह से था।

रानी से अफेयर के चर्चे
माना जाता था कि रास्पुतिन ने अपनी जादूई शक्तियों से महारानी अलेक्जेंड्रा को वश में कर रखा था। 1914 में जब प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ा तब अलेक्जेंड्रा लोगों के निशाने पर आ गईं। रास्पुतिन और महारानी के बीच करीबी लोगों के समझ नहीं आती थी। पूरे रूस में दोनों के सेक्सुअल रिश्ते की बातें चलती थीं, पर ये कभी सिद्ध नहीं हो पाया। हालांकि, इतिहासकार उनके बीच के पत्रों को इसका सबूत मानते हैं। एक पत्र में अलेक्जेंड्रा ने रास्पुतिन को लिखा था, ”मेरी रूह को तुम्हारे साथ ही सुकून मिलता है। मेरे गुरु हो तुम। मैं तुम्हारे हाथ चूम रही हूं और तुम्हारे कंधे पर अपना सिर रख रही हूं”।

जहर, गोली कुछ नहीं मार सका उसे, फिर उठकर खड़ा हो गया
जब रुस विश्वयुद्ध में हारने लगा तो कहा जाने लगा कि रास्पुतिन के कहने पर ये सब हो रहा है। शाही घराना एक सनकी के कहने पर चल रहा है। ये भी खबर उड़ने लगी कि रास्पुतिन और रानी जर्मनी के एजेंट हैं। बस यहीं से रास्पुतिन के अंत की शुरुआत हुई। 1916 में राजकुमार फेलिक्स युसुपोव ने एक पार्टी में रास्पुतिन को बुलाया और वहीं पर उसे केक में सायनाइड मिलाकर दे दिया गया। पर कत्ल करने वाले हैरान रह गए क्योंकि जहर का उस पर कोई असर नहीं हुआ था। युसुपोव ने गुस्से में पिस्तौल निकाल ली और रास्पुतिन के पेट में गोलियां दाग दीं वो खून से लथपथ होकर गिर पड़ा, पर पता नहीं कैसे फिर खड़ा हो गया और राजकुमार को पकड़ लिया। युसुपोव ने दो गोलियां और मारीं उसके बाद उसे बेरहमी से पीटा गया और कपड़े मे लपेट के बर्फीली नदी में फेंक दिया गया।

ये बात 30 दिसंबर 1916 की है। सेंट पीटर्सबर्ग नदी के बर्फीले पानी से एक जोगी की लाश निकाली गई, पता चला कि वो रास्पुतिन था। सब तब हैरान रह गए जब पता चला कि उसकी मौत जहर और गोलियों से नहीं बल्कि पानी में डूबने से हुई थी। इसके बाद लोगों में और खौफ बन गया कि कहीं रास्पुतिन की आत्मा तबाही ना मचा दे। हुआ भी कुछ ऐसा ही। माना जाता है कि मौत के बाद भी रास्पुतिन के श्राप ने राजा जार की नस्ल ही खत्म कर दी। उसके मरने के एक साल बाद ही रूस में अक्टूबर क्रांति हुई और लेनिन ने कम्युनिज्म लाकर राजा जार और उनके पूरे परिवार को उसी के महल में मौत के घाट उतार दिया।

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