Iranian Rial, which has been hit by the US dollar, has become $ 1 = $ 90,000 Rial
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अभी हाल ही में जिस तरह भारतीय मुद्रा रुपए की गिरावट हुयी वैसे ही अन्य देशों जैसे पाकिस्तान, श्रीलंका, इंडोनेशिया और नेपाल के रुपए की हालत भी ठीक नहीं है. ईरान की मुद्रा रियाल तो हालत तो और भी बुरी है.
राजधानी तेहरान में लोग अपनी दुकानें बंद कर सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं. ईरान की मुद्रा रियाल अमरीकी डॉलर के सामने इतनी कमजोर हो गयी है कि बाज़ार में लोग 90 हज़ार रियाल देकर एक अमरीकी डॉलर ख़रीद रहे हैं, पिछले साल की तुलना में यह अभी 110% की वृद्धि है, लेकिन आधिकारिक रूप से अभी 1 डॉलर के बदले लगभग 43 हज़ार रियाल देने पड़ रहे हैं.
ईरान के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि राष्ट्रपति हसन रूहानी ने अगर जल्द से जल्द कोई निर्णायक क़दम नहीं उठाया तो देश की हालत और गंभीर हो सकती हैं. 8 मई को जब अमरीका ने ईरान से परमाणु समझौते को ख़त्म करने का ऐलान किया तब से ईरानी मुद्रा रियाल की क़ीमत में 40 फ़ीसदी की गिरावट आई है. ईरान पर फिर से अमरीकी प्रतिबंधों का ख़तरा है. इस ख़तरे के डर से ईरान की पूरी अर्थव्यवस्था और बाज़ार में भगदड़ जैसी स्थिति है. ईरान के निर्यात और आयात बुरी तरह से प्रभावित होने वाले हैं. अल-जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार इस हफ़्ते तेहरान के सेंट्रल मार्केट में दुकानदारों ने कई प्रदर्शन किए. इस बीच ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने कहा है कि संकट की घड़ी में ईरानी शांति और एकता के साथ रहें.
हाल के सालों में ईरानी बैंकों ने 25% ब्याज दर करने की कोशिश की थी ताकि जो अपनी मुद्रा डॉलर में रखना चाहते थे उनका सामना किया जा सके. कहा जा रहा है कि कम ब्याज दरों के कारण लोगों ने व्यापार के लिए डॉलर को ही चुना. विशेषज्ञों का मानना है कि सेंट्रल बैंक के पास विदेशी मुद्रा की भारी कमी है और ईरानी पर्यटकों में डॉलर की मांग में कोई कमी नहीं आ रही है.
ईरान तेल और गैस के निर्यात से सालाना क़रीब 50 अरब डॉलर का राजस्व हासिल कर रहा है. इसमें से सात अरब डॉलर तेल की राष्ट्रीय कंपनियों के पास चला जाता है ताकि वो गैस और तेल की खोज जारी रख सकें. इसके साथ ही इस राशि का इस्तेमाल ये उपकरणों और नवीनीकरण के मद में भी करते हैं. इसके साथ ही क़रीब 9 अरब डॉलर ईरानी पर्यटकों को मुहैया कराया जाता है. एक अनुमान के मुताबिक़ तस्करी में 12 से 20 अरब डॉलर की राशि चली जाती है. मतलब हर साल तेल और गैस के निर्यात से आने वाले 50 अरब डॉलर में से 28 से 36 अरब डॉलर देश से बाहर चले जाते हैं.
इन सबके बीच अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि अमरीका ने 8 मई को परमाणु समझौते को रद्द किया तो इसका बड़ा मनोवैज्ञानिक असर देशी और विदेशी निवेशकों पर पड़ा. लोगों ने अपनी पूंजी ईरान से वापस लेकर दुबई और इस्तांबुल में लगाना शुरू कर दिया. निवेशकों के मन में ईरान की अर्थव्यवस्था में अस्थिरता का डर बुरी तरह से घर कर गया है.
ईरान के पहले उपराष्ट्रपति और सुधारवादी नेता ईशाक़ जहांगीरी ने कहा है कि- “ईरान गंभीर ‘इकनॉमिक वॉर’ में जा रहा है और इसका नतीज़ा बहुत बुरा होगा. इस संकट से चीन और रूस भी नहीं निकाल सकते हैं. अमरीका ही इस संकट से ईरान को निकाल सकता है.”
ईरान के जाने-माने अर्थशास्त्री सईद लायलाज़ ने अल-जज़ीरा से कहा है, ”सरकार विदेश जाने वाले ईरानियों को डॉलर ख़रीदने के लिए सब्सिडी देती है. इस सब्सिडी को तत्काल ख़त्म किया जाना चाहिए. सरकार की नीति के अनुसार विदेश जाने वाले हर ईरानी बाज़ार की दर से आधी क़ीमत पर 1000 डॉलर ख़रीद सकता है. हर साल एक करोड़ से एक करोड़ 20 लाख के बीच ईरानी विदेश जाते हैं और ये 15 अरब डॉलर से 20 अरब डॉलर तक खर्च कर आते हैं. इस सब्सिडी के कारण डॉलर की मांग कभी कम नहीं होती. मैं ये नहीं कह रहा कि सरकार ईरानियों के विदेशी दौरे को सीमित कर दे पर सरकार सब्सि़डी देना तो बंद कर ही सकती है. हमें नहीं पता कि सरकार इस पर कोई फ़ैसला क्यों नहीं ले रही है.”