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यूनिवर्सिटी ने बुर्का पर रोक लगाया कहा- ग्रेजुएट होना है तो पहनना छोड़ो…!

इंडोनेशिया की एक इस्‍लामिक यूनिवर्सिटी ने छात्राओं के कैंपस बुर्का या कपड़े से पूरा मुंह ढकने पर प्रतिबंध लगा दिया है। यूनिवर्सिटी को बुर्का पर रोक लगाने के फैसले पर बुधवार को कुछ मुस्लिम समूहों और कट्टरपंथी विचारधारा के लोगों की आलोचना का सामना करना पड़ा।

इंडोनेशिया की इस इस्लामिक यूनिवर्सिटी ने कैंपस में पनप रही कट्टरपंथी विचारधारा पर अंकुश लगाने के लिए छात्राओं के बुर्का पहनकर आने पर रोक लगा दी है। इस कदम की मुस्लिम समूहों ने कड़ी आलोचना की है। करीब 25 करोड़ की जनसंख्या वाला इंडोनेशिया दुनिया में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश है। देश की 87 फीसद आबादी मुस्लिम है। लेकिन हाल के समय में कट्टरपंथी विचारधाराओं के पनपने से इस देश की धार्मिक सहिष्णुता और विविधता की छवि को खतरा पैदा हो गया है।

एक रूढ़िवादी समूह इस्लामिक डिफेंडर्स फ्रंट, जो इन गतिविधियों के खिलाफ अभियान चला रहा है और इसे गैर-इस्लामिक मानता है, उसने एक बयान में कहा है कि यह नीति समझ नहीं आई। इससे देश की विविधता को संरक्षित करने के प्रयासों पर असर पड़ेगा। वहीं एक महिला अधिकार कार्यकर्ता ने उन लोगों की भर्त्सना की, जो महिलाओं की आजादी पर आघात कर रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि ‘हिजाब का उपयोग करना एक विकल्प है और हम अपनी पसंद और उनकी आजादी में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।’

जावा द्वीप के योग्याकार्ता शहर की स्टेट इस्लामिक यूनिवर्सिटी (यूआइएन) ने बुधवार को कहा, बुर्के या नकाब का इस्तेमाल करने वाली 41 छात्राओं को कहा गया है कि अगर वे ग्रेजुएट होना चाहती हैं तो उन्हें यह पहनावा छोड़ना होगा। इसके लिए उनकी काउंसलिंग कराई जाएगी। यूनिवर्सिटी के रेक्टर युदीन वहीउदी ने कहा, ‘बुर्का कट्टरता का उदाहरण है। छात्राओं के बुर्का पहनने से शिक्षण प्रक्रियाएं बाधित होती हैं। हम मध्यम इस्लाम को आगे बढ़ा रहे हैं और यह नीति छात्रों के लिए सुरक्षात्मक कदम है।’ यूआइएन के इस कदम पर हालांकि कई इस्लामिक संगठनों ने नाराजगी जाहिर की है। इस्लामिक डिफेंडर्स फ्रंट ने एक बयान में कहा कि ऐसी नीति का कोई मतलब नहीं है। जबकि एक महिला अधिकार कार्यकर्ता ने कहा कि यह महिलाओं की आजादी है कि वे क्या पहनना चाहती हैं? यह उनकी आजादी को सीमित करने का कदम है।

यूनिवर्सिटी प्रशासन का कहना है कि वह उदारवादी इस्‍लाम को आगे बढ़ा रहे हैं। वैसे बता दें कि हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में पता चला है कि स्‍कूल और यूनिवर्सिटी के छात्रों ने वर्तमान धर्मनिरपेक्ष सरकार पर खलीफा की स्थापना का समर्थन किया है।

 

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